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क्रूसो का द्वीप से उद्धार।


पहुँचे। जहाज़ के लोगों ने अन्धकार में समझा कि उनके पक्ष के आदमी लौट आये हैं। कप्तान और मेट ने जहाज पर चढ़ते ही बन्दूक़ के कुन्दे से दूसरे मेट और मिस्त्री को मार कर अपने काबू में कर लिया। इधर कप्तान के साथी नाविकों ने जहाज के डेक के लोगों को बाँध लिया। जो लोग कोठरी में थे वे वहीं बन्दी कर लिये गये। कोठरी के द्वार में बाहर से जंजीर लगा दी गई। इसके बाद वे लोग नीचे उतर गये। नीचे के कमरे में विद्रोही दल का नया कप्तान था। वह शोरगुल सुन कर जाग उठा था और सावधान हो कर दो-तीन आदमियों को साथ ले बन्दूक द्वारा युद्ध करने को तैयार था। मेट को सामने पाते ही गोली मारी। इससे मेट का हाथ टूट गया, और भी दो आदमी घायल हुए, पर कोई मरा नहीं। और लोगों को पुकार कर मेट एकदम नये कप्तान के ऊपर टूट पड़ा और उसके सिर में पिस्तौल दाग दिया। पिस्तौल की गोली उसकी कनपटी छेद कर बाहर निकल गई। वह फिर हिला तक नहीं। तब जहाज के और लोगों ने आप ही वश्यता स्वीकर की। बिना ज़्यादा ख़ून-ख़राबी के जहाज़ पर दख़ल हो गया।



क्रूसो का द्वीप से उद्धार

मैं समुद्र तट पर दो बजे रात तक बैठा रहा। आशा और सन्देह के हिंडोले पर चढ़ कर मन कभी ऊपर और कभी नीचे का झोंका खा रहा था। कभी आनन्द से रोमाञ्च हो उठता और कभी भय से हृदय काँप उठता था। ऐसे समय