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राबिन्सन क्रूसो।


जहाज़ पर सात बार तोप की आवाज़ हुई। सुन कर कहीं से जी में जी आया। फक से निश्वास त्याग कर सँभल बैठा, और यह जान कर आनन्द की सीमा न रही कि कप्तान ने जहाज को जीत कर अपने अधिकार में कर लिया। तब मैं निश्चिन्त हो कर घर आया और सो रहा। मैं दिन भर के कठिन परिश्रम और घोर उद्वेग से इतना क्लान्त था कि लेटते ही गहरी नींद आगई।

अचानक तोप का शब्द सुन कर मेरी नींद टूट गई। सुना, कोई मुझको पुकार रहा है "सेनापति, सेनापति"। अच्छी तरह नींद टूट जाने पर पहचाना कि यह कप्तान का कण्ठ-स्वर है। मैं सीढ़ी लगा कर पहाड़ पर चढ़ा। कप्तान वहीं पा कर मुझे पुकार रहा था। मैं उस के पास ज्योंही गया त्योंहीं वह मेरे गले से लिपट गया और उँगली उठा कर जहाज की ओर दिखलाया। कुछ देर आनन्द के आवेग में पड़ कर वह कुछ बोल न सका। फिर आनन्दोच्छवास को रोक कर गद्गगद कण्ठ से बोला-आप मेरे प्राणदाता हैं, हितैषी हैं! यह आप ही का जहाज़ है। हम लोग भी आप ही के हैं! हम लोगों के जीवन, धन सभी आपके हैं।

मैंने जहाज़ की ओर तजवीज़ कर के देखा, वह तट से आध मील पर था। तब मैंने जाना कि जहाज़ दख़ल हो जाने पर कप्तान उसे आगे बढ़ा लाया है।

मैं आनन्द से एकदम विदेह हो गया। कप्तान मुझको छाती से लगाये खड़ा था नहीं तो मैं जमीन पर गिर पड़ता। वह भी मेरे ही ऐसा आनन्द-विमुग्ध था, तथापि वह मुझको प्रकृतिस्थ करने के लिए कितनी ही मीठी मीठी बातें कहने