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क्रूसो का द्वीप से उद्धार।


लगा। आनन्द और उल्लास ने मेरे सभी भावों को उथल पुथल कर दिया था जिससे मैं कुछ बोल न सकता था। जब हृदय में आनन्द को रहने की जगह न मिली तो वह उमड़ कर आँसुओं के रूप में आँखों की राह बाहर निकल आया। आनन्द का कुछ अंश बाहर निकल जाने से मुझे कुछ बोलने का अवसर मिला। मैंने भी कप्तान को दृढ़-आलिङ्गन करके उसे अपना बन्धु और उद्धार-कर्ता कह कर अभिनन्दन किया। सारी घटना एक से एक बढ़ कर विस्मय बढ़ा रही थी। यह सब ईश्वर की अतयं महिमा और अपार दया के विधान का निदर्शन है। मैंने हृदय से ईश्वर को धन्यवाद दिया।

कुछ देर योंही वार्तालाप होने के बाद कप्तान ने कहा कि "मैं आपके लिए जहाज़ में से कुछ खाने-पीने की चीज़ लाया हूँ।" उसने नाव के माँझियों को पुकार कर वे खाद्य वस्तुएँ लाने को कहा। वे लोग तुरन्त सब चाजे ले आये। कई तरह की वस्तुएँ थीं। बिस्कुट, मांस, तरकारी, चीनी, नीबू, शरबत, तम्बाकू और भी कितनी ही चीज़ थीं। इन सब वस्तुओं के अतिरिक्त आधे दर्जन धुले पैजामे, गुलूबन्द, दस्ताने, जूता, टोपी, मोज़े और एक सेट खूब बढ़िया पोशाक थी। यह कहना वृथा है कि उपहार की ये सामग्रियाँ मेरे लिए अत्यन्त दुर्लभ और आदरणीय थीं। मेरे सर्वाङ्ग की पोशाक से सजने के लिए कप्तान यह सामान जहाज़ से उठा लाया था। अतएव इससे सुन्दर और चमत्कारी उपहार मेरे लिए और क्या हो सकता था। किन्तु मेरे लिए यह असुखदायी पदार्थ था। बहुत दिनों से पोशाक पहनने की आदत छुट जाने से बाज़ पोशाक पहनते अत्यन्त कष्ट होता था।