पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/११

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८ रामचन्द्रिका सटीक । बुधे भद्रा सिद्धियोग होत श्री कार्तिक सुदी एकादशी को विष्णु जागतहैं विष्णुके जागे के उपरान्त ग्रन्थारम्भ करचो तौ चैत्रादिमास गणनासों कार्मिक पर्यंत पाठ औ रविवारादि वार गलनातों बुधपर्यंत चारि जोरि द्वादशी तिथि जानो ६ सुखसार मुक्ति चौवीसवें प्रकाश में रामचन्द्र कह्यो है कि जगछूटे सुख योग तासों जानों ७ तीनि छंदकी अन्नय एक है सिद्धि जो आठ अणिमादिक हैं और ऋद्धि सम्पत्ति औ सत्यको धाम ऐसो जो रामनाम है. तासों सुखसार पैहौ सुखसार देबेको और नामको काम नहीं है तो सिद्धिको धाम कहि ऐहिक सुखप्रद जनायो औ सप्तको धाम कहि सत्यही ब्रह्म है तासों ब्रह्मरूपप्रद जनायो अर्थ जीवत में या लोक में सुखद है औ अन्तमें ब्रह्मपदप्रद है ८ । । १०॥ केराव-रमणछंद । दुख क्यों टरी है ।। मुनि-हरिजू हरी है ११ मुनि-तराणिजाछंद॥ बरणिवे बरणसो ॥ जगत को शरणसो १२ प्रियाछंद ॥ सुखकंद है रघुनंदजू ॥ जग यों कहै जगवंदजू १३ सोमराजीचंद ॥ गुनो एकरूपी सुनो वेद गावें ॥ महादेव जाको सदा चित्तला३ १४ कुमारल- लिताछंद॥ विरंचि गुण देखै । गिरा गुणनि लेखै ॥ अनंत मुख गावै । विशेष यही न पावै १५ ॥ केशव पूछ्यो कि लोभ मोहादि कृत जो दुखहै सो कैसे टरिहै तब मुनि कह्यो कि जब तू रामनाम ग्रहण करिहै तब रामचन्द्र हरिहैं छोड़ाइ हैं इहां | हरिशब्द यासों कह्यो कि 'हरति दुःखमिति हरिः' अर्थ दुखहरिवो उनके नामही को अर्थ है ११ दुख छोड़ाइ रामचन्द्र मुक्ति देहैं या निश्चय के अर्थ रामचन्द्र को ईश्वरत्व केशवको मुनि चारि छंद में देखावत हैं जो | जगत्को शरण रक्षक है सो बरण रूप राम रूप अथवा रामनामांक तुम करिकै वर्णिबे है अर्थ रामचन्द्रको रूप अथवा राम नाम वर्णन करो १२ सब जग कहत है कि रघुनन्दन जे रामचन्द्र हैं ते सुख के कंद कहे मूल हैं इनहीं के आश्रित सब सुख हैं औ जगबंद हैं सब जग जिनको वंदना करत है सुख कंद कहि या जनायो कि सुखसार रामचन्द्रही सों पाइ है और देव देवे को समर्थ नहीं हैं १३ जिन रामचन्द्र को वेद जो हैं सो