पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/११३

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११० रामचन्द्रिका सटीक । सुखसंपति तेरे ३८ लक्ष्मण ॥वै प्रभु हौं जन जानि सदाई। दास भये, महँ कौनि बढ़ाई ॥जो भजिये प्रभु तो प्रभुताई। दास भये उपहास सदाई ३६ ॥ विचक्षण प्रवीण चितरूपी जो चकोर है ताके चन्द्रमाही जैसे चन्द्रमा चकोर को सुख देव है तैसे तुम चित्तको सुख देवहौ चन्द्रमा मृगनके वि- मान रथको रोहत है अर्थ चढ़त है तुम मृगरूपी जे लोचन हैं तिनही के विमाननको रोहतही अर्थ जो तुमको कोऊ देखत है ताके नयननमें ऐसे बसिजात हो कि उतरत नहीं ३४ शासन आज्ञा ३५ हे मनरोचन ! अर्थ मेरे मनको तुम अति रुचतही ३६ अपने रूप भी यौवनके संग इन्हें लेखि कहे जानु अर्थ जैसो रूप यौवन तेरो है तैसो इनाईको है, ३७ । ३८ सदाई जनहीं कहि या जनायो कि कबहू प्रभुता हैपेकी आशा नहीं है ३६ ।। मल्लिकाछद । हासके विलास जानि । दीह मान खंड मानि ॥ भक्षिकेको चित्त चाहि | सामुहे भई सियाहि १० तोमरछंद ।। तब रामचन्द्र प्रबीन। हँसि बंधु त्यों दृगदीन । गुनि दुष्टता सहलीन । श्रुतिनासिका बिनु कीन ४१ दोहा।। शोणविछि छूटत वदन भीम भई तिहि काल ॥ मानो कृत्या' | कुटिलयुत पावकज्वाल कराल ४२ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्री- रामचन्द्रचन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायांशूर्पणखा- अरणनासिकाछेदननामैकादश प्रकाश ॥ ११ ॥ जब नान्यो कि ये मोसौ रमिह नहीं केवल मोसों हासके विलास उप हास करन हैं तब दीह कहे बड़ो आपनो मानखण्ड कहे अपमान मानि के ४०। ४१ कराल पावकज्वाल सो युग है बदन नाको ऐसी मानों कस्यानापा देवी है " कन्या क्रियादेवतयोरिति मेदिनी" ४२ ॥ इति श्रीमलगजननिजनकजानीजानकीनानिप्रसादाय जननानकीप्रसाद निर्मितायारामभक्तिप्रकाशिकायामेकादश प्रकाश ॥ ११ ॥ ---