पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१२

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8 रामचन्द्रिका सटीक । एकरूपी कहे जो सदा एकरूप रहत हैं ब्रह्मज्योति जासों गुन्यो कहे ठह- रायो है सो गान करत हैं सो हम वेदवाक्य सों सुन्यो है अथवा एक | कहे जिनसम दूसरो नहीं है औ रूपी कहे अनेक रूपसों सर्वत्र व्याप्त हैं फिरि कैसे हैं जिनको महादेव सदा ध्यावते हैं १४ यामें रामचन्द्र के गु- एन को माहात्म्य है अनंत शेष विशेष निर्णय १५ ॥ नगस्वरूपिणीलंद ॥ भलो बुरो न तू गुनै । वृथा कथा कहै सुनै । न रामदेव गाइहै । न देवलोक पाइहै १६ षट्- पद ॥ बोलि न बोल्यो बोल दयो फिरि ताहि न दीन्हो । मारि न माखो शत्रु क्रोध मन वृथा न कीन्हो ॥ जुरि न मुरे संग्राम लोककी लीक न लोपी । दान सत्य सन्मान सुयश दिशि विदिशाअोपी ॥ मन लोभ मोह मद कामवंश भयो न केशवदास भणि । सोइ परब्रह्म श्रीराम हैं अवतारी अवतारमणि १७ दोहा । मुनिपति यह उपदेश दै जवहीं भयो अदृष्ट ॥ केशवदास तहीं कखो रामचन्द्रजू इष्ट १८ ॥ तू अनेक कथा वृथा कह्योसुनोकरतहै आपनो भलो बुरो नहीं गुनतो विचार तो जबलौं जैसे पूर्व कहिआये ऐसे रामदेवको न गाइहै तबलौं अनेक कथनसों देवलोक न पैहै इहां देवलोक वैकुंठ जानो वैकुंठ देवे की शक्ति रामचन्द्रही में है और देव नहीं दैसकत कहूं रामलोक पाइ है पाठ है तो रामलोक वैकुंठ १६ प्रथम ईशत्व वर्णन कत्यो अब यामें रामचन्द्र को स्वभाव गुण वरण्यो है रामचन्द्रजू बोले सो फेरि नहीं बोले अर्थ जो एक बात कह्यों सोई कस्यो है फेरि बदलिकै और बात नहीं कह्यो वनगमनादि वचन ते जानो औ |जाको दान दियो ताको फेरि वही दीन्हो अर्थ एकही बार ऐसो दियो जामें बाके फेरि मांगिबे की इच्छा नहीं रही विभीषणादि को लंकादानादिते | जानो और शत्रुको एकही बार ऐसो मारिकै नाश कियो जामें फेरि नहीं मारिवे परयो खरदूषण रावणादि वधते जानो औ संग्राममें जुरिकै नहीं मुरे खरदूषण रावणादिके युद्धते जानो औलोककी लीक मर्यादाको लोप नहीं कियो रावणके वधसों ब्रह्मदोष मानि अश्वमेध करनादि सों मानो और "दान औ सत्य औ सन्मान के सुयश करिकै दिशा में विदिशा, प्रॉपी