पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१२५

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१२२ रामचन्द्रिका सटीक। धुकधुकी है जेवपदको सपथ याहमें है औ फि उरको हार है औ फि काम | केलि समयको हमारो बंधन फास है औ कि कामकेलि समयको हमारे ताडिको ताजनो कशा कोड़ा इति अर्थ कामकेलिमें अतिचंचल कर्ता है औ कि कामकेलिको जो विचार कहे विगत चालचलन है रतांत इति ताको रत भ्रमहर चमर कहे बालव्यजन है यह चमरपदते व्यजन जानी अथवा हमारे विचार को चमर है अर्थ विचारको शोभा को है अर्थ प्रकाश कर्ता है ऐसो इमारो विचार अनुमान है औ कि सीताजूके मानकी जमनिका कनात है अर्थ याहीकी भाड़में सीताजूको मानरहत रयौ औ कि सीता को कजमुख दिवेको सप सुखसार उत्तरीय है याही विधि उत्तरीयको वर्णन हमबाटकमें है। "यूते पणा प्रणयकलिष्ट करावपाशा क्रीडापरिश्रम- हर व्यजन रसान्ते । शय्यानिशीथसमये, जनकात्मजाया प्राप्त मया विधि- शादिह चोरारीयम् ६०॥ स्वागताछद । वानरेन्द्र तब यों हॅसि बोल्यो। भीत भेद जियको सब खोल्यो॥ागिबारि परतक्ष करीजू । रामचन्द्र हसि बॉह धरीजू ६१॥ अब निश्चय मित्र जान्यो तब आपनो भीत भेद कहे पालिकृत भयको सब भेद खोल्यो कहे को मित्रों श्रत फरणको सब भेट को चाहिये ६१ ॥ सूरपुत्र तब जीवन जान्यो । नालि जोर बहुभाति ब- सान्यो । नारिछीनि जेहि भाति लईजू।सो अशेप गिनती मिनयीजू ६२ एकबार शर एक हनौ जो। सातताल वल- तगौतो॥गमचन्द्र हॅसिवाण चलायो।तालमेघि फिरि के कर आयो ६३ सुग्रीन-तारक्वद ॥ यह अहतकर्म न और होई । सरसिद्ध प्रसिद्धनमें तुम कोई ॥निरीमनते सिगरी दुचिताई । तुमसों प्रभुपाय सदा सुखदाई ६४ विजय उद । पामनो पद लोफन मापि ज्यों बावनके वपुमा: सिधायो । केशव सूरसुता जलसिंधुहिं पूरिक सूरहिंसो पद पायो॥कामके बाप त्वचा सव बेधि कामपै श्रावत ज्यों