पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१३४

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रामचन्द्रिका सटीक। अवगाहन सीतहि चाहन यूथप यूथ सबै पठये । नल नील ऋक्षपति अगदके सँग दक्षिणदिशि को बिदा भये ३२ ।। जैसे वृद्धदासीके शुक्ल रोमनकरि सर्वाग शुक्ल होत हैं तैसे याहू शुञ्ज है | तासों दृद्धदासी सम को लक्ष्मण संघोधन है २८ सत्वर कहे शीघ्र चित्त चही कहे न मानी २६ । ३० । ३१ साथहि कहे लक्ष्मण के साथहि रामचन्द्र के पास भाइगये लक्ष्मण इतिशेष सूरम काशी कहे सूर्यको ऐसो है प्रकाश जिनको ३२॥ दोहा ॥ बुधिविक्रमव्यवसाययुत साधु समुझि रघुनाथ ॥ बलअनंत हनुमंतके मुंदरी दीन्हीं हाथ ३३ हीरकबद ॥ चंडचरणछडि धरणमंडि गगन धावहीं । तत्क्षण हूय दक्षिण दिशि लक्ष्य नहीं पावहीं ॥ धीरधरन वीरबरन सिंधुतट सुभावहीं । नाम परमधाम धरम रामकरम गावही ३४ ॥ बुद्धिपद सो दान उपाय जानों काहेते बुद्धिमान् ठ नाही करत समय विचार दान उपापसों कार्य साधत हैं नौ विक्रम कहे प्रतिषल "विक | मस्त्वतिशक्तिता इत्यमर." यासों दड उपाय जाना बली प्रतिबलसों दड करि कार्य साधत है व्यवसाय कहे यासों भेद उपाय जानों यन्त्री पुरुष अनेक यन करि मत्र्यादिकन मो भेद कारकै कार्य साधत हैं श्री साधु | पदते साम उपाय जानों साधु प्राणी मिलापही सो कार्य साधत हैं सो यासों समयोचित चारिहु उपाय करि कार्य साधिबे को लायक हनूमान् कों | समुझिक पल कहे सैन्य अनंत है ताके मध्यमें हनुमंतके हाथ में रामचन्द्र | मुंदरी दीन्ही ३३, तरक्षण कहे जब रामचन्द्रकी श्राझा पायो ताही क्षण चंड कहे प्रचंड चरणनसों परणि पृथ्वीको छडिकै अर्थ अति जोरसों कूदिक गगन कहे प्राफाश को मडिकै भूषित कारकै अर्थ आकाशमार्ग है के धावत है सीताको लक्ष्य को खोज नहीं पावत धीर के धरनहार जे वीरवरन धीरस्वरूप सब हैं ते सिंधुके तटमें मुभावही सो घरमको परम कहे षड़ो धाम जो राम नाम है नौं कर्म बालिवधादि ति गावत है धीरधरन कहि या जनायो कि यद्यपि खोजा नहीं सीताको पायो परतु, धीरको पर है