पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१३५

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१३२ रामचन्द्रिका सटीक । अधीर नहीं भये तो जहाँ ताई खोज पाइहैं तहां ताई दूँकि हैं औ सुभावही कहि या जनायो कि कछु भय मानिकै राम नाम को नहीं गावत ३४ ।। अंगद-अनुकूलचंद ॥ सीय न पाई अवधि विनासी । होहु सबै सागरतटवासी॥जो घर जैये सकुच अनंता। मोहिं न छोड़े जनकनिहंता ३५ हनुमान् ॥ अंगद रक्षा रघुपति कीन्हों। शोधन सीता जलथल लीन्हों । आलस छांडो कृत उरानो । होहु कृतघ्नी जनि सिख मानो ५६ अंगद- दडक ॥ जीरण जटायु गीध धन्य एक जिन रोकि रावण विरथ कीन्हों सहि निज प्राणहानि। हुते हनुमंत बलवत तहां पांच जन दीनेहुते भूषण कळूक नररूप जानि ॥ भारत पुकारतही रामराम बारबार लीन्हों न छेड़ाय तुम सीता अति भीत मानि । गाय द्विजराजतियकाजन पुकार लागे भोगवै नरक घोर चोरको अभयदानि ३७ दोहा ॥ सुनि सपाति सपक्ष है रामचरित सुखपाय ॥ सीता लङ्का मांझ हैं खगपति दई बताय ३८ दडक ॥ हरिकैसो वाहन की विधिकैसो हेमहंस लीकसी लिखत नभ वाहनके अकको। तेजको निवान राममुद्रिका विमान कैधौं लक्ष्मणको बाण छूथ्यो रावण निशंकको ॥ गिरि गजगंडते उड़ान्यो सुबरण अलि सीतापदपकज सदा कलकरकको । हवाईसी छूटी केशवदास पासमानमें कमानकैसो गोला हनुमान चल्यो लकको ३६ ॥ पास दिवस की अवधि दिनो है यथा पाल्मीकीये "अधिगम्य तु पैदेही निलय रापणस्य च ॥ मामे पुणे निर्म नमुदगं प्राप्य पर्वतम् १ अर्व मासान वरतव्य बसन् थ्यो भवेन्मम ' ३५॥ ३६ जीरण शुद्ध ३७ चन्द्रमा ऋषिको आशीर्वाद रहा है कि सीना के खोजको वानर एन्हेिं मिले