पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१४६

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. रामचन्द्रिका सटीक। १४३ पक्ष सिंह जानौ रामपक्ष केशरी केशरिउ दीप कहे तासों औ वासर जो दिन है ताकी संपति कई लक्ष्मी शोभा इति ताको उलूक जो घूघुपक्षी विशेष है ताके समान नहीं देखत घूधूको दिनको देखि नहीं परत औ रामचन्द्रको अनेक वस्तु देखि विरह उद्दीपन होत है तासों दिनमें इत उत नहीं निरखत श्री चन्द्रमाको देखि चक्रवाक समान चपत हैं चन्द्रमा विरह उद्दीपन है तासों औ केका जो मोरवाणी है ताको सुनि व्याल जो सर्प हैं ताके समान पिलातजात है सर्प भक्षण के भयसो रामचन्द्र विरहवर्धन भयो "केका वाणी मयूरस्य इत्यमरः" औ घनश्याम कहे सजल जे घन मेघ हैं तिनको जो घोरशब्द है तासों जवासे समतपत हैं जवासो जलष्टि सों निजजारियो जानिकै रामचन्द्र के विरहाग्नि ज्वलित होति है तासौं भी वन में ठौर और भौंरसम भक्त रहत है औ जैसे योगी ध्यान धारणादि करत राति बितायत है तैसे तुमारे पियोगसौं विफल जे रामचन्द्र हैं तिनको रात्रिहमें निद्रा नहीं पति औ जैसे शाक्त कहे देवी को उपासक देवी को नाम जपत है वैसे राम तिहारोई नाम राति दिन जपत हैं ८८ ॥ हनुमान-बारिघरबद ॥राजपुत्रि यक बात सुनौ पुनि। रामचन्द्र मनमाहें कही गुनि ।। राति दीह यमराजजनी जनु। यातनानि तनजानत के मनु ८६ ॥ दीइ कहे घड़ी जो राति है सो जानौ यमराजकी जनी कहे किंकरी है ता राति करिकै कृत जो यातना पीड़ा है ताको कि हमारो तन जानत है कि मन जानत है जापै बीतति है अर्थ कहिबे लायक नहीं है अति बड़ी है औं यम किंकरनहूं करिकै कृत यातना कहिये लायक नहीं हावि पति- कठोर होति है तासों यमकिंकरी सम को । दोहा । दुखदेखे सुख होहिगो सुःखन दुःख बिहीन ॥ जैसे तपस्वी तपतपै होत परमपदलीन १० बरपावभव देखि के देखी शरद सकाम । जैसे रणमें कालभट भेटिभेटि यत- वाम ६१ दु:ख देखिकै देखि हों तव मुखं पानॅदकंद ॥ तपन तापतपि द्यौस निशि जैसे शीतल चंद १२ अपनी दशा कहा