पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१५

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रामचन्द्रिका सटीक । अतिनिपट कुटिलगति यदपि आप । वह देत शुद्धगति छुक्त श्राप ॥ कछु अापुन अधअधगति चलंति । झलपति वन को ऊरधफलंति २६ मदमत्त यदपि मातंग संग । प्रति तदपि पतितपावन तरंग ॥बहु न्हाइ न्हाइजेहि जल सनेह । सब जात स्वर्ग शूकर सुदेह २७॥ त्रिकालदर्शीत्वते जेतो काल बीते रामचन्द्र को अवतार होनो रहै सो काल अतीत कहे वीतो जानिकै औ जा काल में रामचन्द्रजू यज्ञरक्षा करन लायक भये सो काल श्रागत आयो गुनिकै २४।२५ दुवौ छंदन में विरो- धाभास है आप कहे अपना औ आप कहे जल के छुवतही शुद्धगति मुक्ति देत है अथवा जाके जल को कहूं अनतहूं छुवौ तौ शुद्धगति देत है ऊरध पदते स्वर्ग जानो २६ मद मदिरा सों मत्त यद्यपि मातंग चाण्डालन को संग है विरुद्धार्थः ।। "मातङ्गः श्वपची हस्तीत्यभिधानचिन्तामणिः" औ मत्त गज जामें स्नान करते हैं इत्यविरोधः ।। पतितपावन कहे पतितनको पवित्रकर्ता स्नेहनसों ताके जल में न्हाइ न्हाइकै शूकर पर्यन्त बहु प्राणी सुंदर देहको धरि सब स्वर्ग जातहैं अथवा सनेह कहे अप्सरादिकनके इति | शेषः ॥ स्नेह सहित अर्थ अप्सरादि स्नेह सहित ताको स्वर्ग ले जाती हैं अथवा तेहिके जलके स्नेहहू सों कहूं होइ सरयूजलमें स्नेह करै स्वर्ग जाइ कहूं सदेहयात है देह सहित स्वर्ग जाइ अर्थ याही देहमें देवरूपताको प्राप्त है जात हैं जिनको देह त्यागहू को कष्ट नहीं होत इति भावार्थः अथवा शकर देह सहित जे जीव हैं ते स्वर्ग जात हैं और देहधारी तौ जातही हैं२७॥ नवपदीछंद ॥ जहँ तहँ लसत महामदमत्त । वरबारन बारनदलदत्त ॥ अंगअंग चरचे अतिचंदन । मुंडनभुरकेदे- खियबंदन २८ दोहा । दीह दीह दिग्गजनके केशव मनहुँ कुमार ॥ दीन्हे राजा दशरथहि दिगपालन उपहार २६ अ- रिलछंद ॥ देखि बाग अनुराग उपज्जिय । बोलत कल ध्वनि कोकिल सज्जिय ॥राजति रतिकी सखी सुवेषनि । मनहुँ बहति मनमथ संदेशनि ३०॥