पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१५१

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१४६ रामचन्द्रिका सटीक। वघरूप अथवा कर्तव्य वस्तु विचाररूप जो मत हिरानो रहेताको पायो १८ अब यह दरशायेहू कहे हमारी ओर निहारो यह कहेहू पर हमको नहीं दरशै कहे देखति अर्थ हमारी ओर नहीं निहारति श्री जब पत्याइ कहे जबरई आपने हाथनसों उर में लगाइयत है तब लागति है आपनी ओर सों नही लागति १६ चर कहे जगम मनुष्यादि जड वृक्षादि प्रतिवासर कहे रोज रोज अर्थ निरंतर वासर जो दिन है अथवा रागभेद जो रावण के मदिरन में नित्य राग होत है सो सीता के शर कहे वाण सम लागत है सो शरके लागे सन में घाव होत है वा शरके लागे तन में घाव नहीं होत औ मन नौ माणन में खाग कहें लपटात है अर्थ मन औ प्राणनको छेदत है "वासरो रांगभेदेहीत्यभिधानचिन्तामणि" २०॥ प्रतिभंगनके सँगही दिन नासै। निशिसों मिलि बादति दीह उसासै ॥ निशि नेकहु नींद न पावति जानो । रवि की छवि ज्यों अधरात वखानो २१ घनाक्षरी॥ भौरनी ज्यों भ्रमत रहति वनवीथिकानि हसिनी ज्यों मृदुलमृणालिका चहति है। हरिणी ज्यों हेरति न केशरीके काननहिं केका सुनि व्याली ज्यों बिलानहीं चहति है। पीउपीउ रटत रहति चित चातकी ज्यों चंदचितै चकई ज्यों चुप द्वै रहति है। सुनहु नृपति राम विरह तिहारे ऐसी सूरतिन सीताजूकी मूरति रहति है २२॥ शरदऋतु सौ शिशिर पर्यत दिनमान घटत है रात्रिमान पादत है सो हनुमार शरदऋतु में गये सो, लका जारिकै शरमों अथवा हेमतों रामचन्द्र के पास आये हैहैं सो रामचन्द्रसों कहत है कि जैसे यो समय के दिन मर्याद करिकै नाशै कहे घटत हैं कैसे सीता के सप अग घटत हैं द्वरे होत है औ ज्यों ज्यों निशा पादति है त्यों त्यों दीह सास बादति है दूसरो अर्थ स्वलो है अधरातिमों जैसे रविकी छवि नेक नहीं रहति तैसे सीता, को रातिकै नींद नहीं भावति अधरात कहे प्रसि विनिद्रता जनायो जैसे तुलसी कृतमा कह्यो है कि "सिस्स कुसुम कहुँ षेधत हीरा" २१