पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१६२

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रामचन्द्रिका सटीक । रामनाम २७ त्रोटकछद ॥ जवहीं रघुनायक बाण लियो । सविशेष विशोषित सिन्धु हियो । तबहीं दिजरूप सो प्राइ गयो। नल सेतु रचे यह मंत्र दयो २८ दोहा॥ जहें तहँ वानर सिंधु में गिरिगण डारत आनि ॥ शब्द रह्यो भरि पूरि महि रावणको दुखदानि २६ त्रोटकछंद ॥ उछले जल | उच्च प्रकाश चढे । जल जोर दिशा विदिशान म? ॥ जनु सिंधु प्रकाशनदी परिकै । बहुभांति मनावत पांपरिकै ३०॥ त्योही कहे तत्काल ही मोह कहे दुःख २६ । २७ समुद्रतट में रामचन्द्र तीन दिन डेरा किये रहें जब समुद्र राह नहीं दियो अब समुद्र शोषिये के लिये कोप करि रामचन्द्र पाण लियो इति कथा शेषा २८ । २६ समुद्र को जल उछरि आकाश को चढ़त है सो मानहु समुद्र पायन परिकै आकाश गंगाको मनावत है ३०॥ बहु व्योम विमान ते भीजिगये। जल जोर भये अँग- रागमये । सुरसागर मानहुँ युद्धजये । सिगरे पट भूषण लूटि लये ३१ अतिउच्छलिविंछि त्रिकूटछयो। पुर रावण के जल जोर भयो । तब लंक हनूमत लाइदई । नल मानहुँ प्राइ घुझाइ लई ३२ लगिसेत जहां तहँ शोभगहे । सरि- तान के फेरि प्रवाह बहे ॥पति देवनदी रति देखि भली। पितुके घर को जनु रूसिवली ३३ सब सागर नागरसेतु रची। बरणे बहुधा युत शक शशी । तिलकावलिसी शुभ शीशलस । मणिमाल किधी उरमें पिलसै ३४ तारकछंद। उरते शिवमूरति श्रीपनि लीन्ही । शुभ सेतु के मूल अधि- ठित कीन्ही ॥ इनके दरशे परशै पग जोर्ड । भवसागर के तरि पार सो होई ३५॥ जल जोर भये शो बहुत व्योम श्राकाश म देवतन के विमान भीजि