पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१८२

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- १८० रामचन्द्रिका सटीक रामचन्द्र जे हैं ते हमैं मारिकै एकौ देवता न यथि हैं कहे पाकी रहिहैं। सब देवतन को बसोबास छद्रलोक में रचि है अर्थ हमारे भयसों इद्रलोक सौ भागि देवता कंदरादिकनमो जाइबसे हैं तिन्हें निर्भय करिकै इद्रलोक | में बसाइ हैं २६ छंद उपजाति है ३० । ३१ सनीर कहे सजल जीमूत कहे | मेघनके निकाश सदृश शोभित क्षोमही कहे डरात हैं नैऋत्य राक्षस ३२ रामचन्द्र पूछयो है इति कथाशेषः नेता कहे दंडका ३३ ।। जो व्याघ्रवेष रथ व्यानिकेतधारी । सरकलोचन कुबेर विपत्तिकारी । लीन्हें त्रिशूल सुरशूल समूल मानो। श्री राघवेंद्र अतिकाय वढे सो जानो ३४ जो कांचनीय रथ शृगमयूरमाली । जाकी उदार उर परमुख शक्तिशाली॥ स्वर्घाम धाम हरकीरतिकै नजानी। सोई महोदर वृकोदर बधुमानी ३५ जाके रथाप्रपर सर्पध्वजा विराजै। श्रीसूर्य- मडल विडवन ज्योति साजै ॥ पाखंडलीय वपु जो तन त्राणधारी। देवांतकै सो सुरलोक विपत्तिकारी३६ जो हस- केन भुनदडविषगधारी। सग्रामसिंधु बहुधा अवगाहकारी॥ लीन्ही उडाइजेहि देव प्रदेवरामा । सोर्ड रारात्मज पली मकराक्ष नामा ३७॥ मुर न पता निनस मानो समूल कहे पूर्ण शूल रहे | मरगु है ' शुलोस्त्री रोगमासे स पुरेतनयोगए नि मेग्निी ३४ काच नीयरय कहे सुवर्ण का रथ नाके शामें अग्रभाग में परनकी माला पगनि लगी । अर्थ मवर पनी जाकी शनि बग्छी परमुख जे सामिगतिक दिति उमार कहे बडे उग्में शारी करे लगी है स जो राग तारे धाम पाम कहे पर घर को दर कहे हरणहार है अर्थ मृगहार है ३५ श्रीवर्गमडश को विडयन कहे निदक व्यानि को तेज को साजन अथवा भाप अथवा तनत्राण अखडलीय कहे इको ३६ ॥ ३७॥ भुजगप्रयातदद ॥ लगे स्पदने गाजिराजी विराजें। जिन्हें वेगको पौनको वेगलाजै ॥ भले स्वर्णकी फिकिणीयूथ पशुप कैसी है a रथ