पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१८४

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१८२ रामचन्द्रिका सटीक । चढ़ि हनुमतपर रामचन्द्र तब रावण रोक्यो जाइ॥धरि एक बाण तब सूत छत्र ध्वज काटे मुकुट बनाइ । लागे दूजो शर छूटिगयो वरु लक गयो भकुलाइ ४३ दोधकछद ॥ यद्यपि है प्रतिनिर्गुणताई । मानुषदेह धरे रघुराई । लक्ष्मण राम नहीं अवलोक्यो। नैनन ते न रह्यो जल रोक्यो ४४ राम-बारक लक्ष्मण मोहिं विलोकोमो कहें प्राण चले तजि रोंको ॥ हौं सुमिरौं गुण केतिक तेरे। सोदर पुत्र सहायक मेरे ४५॥ फूलिकै असम हैकै ४१ । ४२ हनुमान, सौ पाणनको डरिकै कपि- | दलको भगायो जाय तहां हनुमान क्यों न गये तो जब रावण या और सों भागो तब लक्ष्मण को लैकै हनुमान् रामचन्द्र के पास गये इति कथाशेष ४३ । ४४॥ ४५ ॥ लोचन बाहु तुहीं धनु मेरो।तू बल विक्रम बारक हेरो॥ तु बिन हों पल प्राण न राखों । सत्य कहाँ कछु झूठ न भाखों ४६ मोहिं रही इतनी मन शका ।देन न पाइ विभी- पण लका ॥ वोलि उठौ प्रभुको प्रणपारो। नानरु होत है मो सुस कारो ४७ विभीषण-सुदरीबद॥ मैं विनऊ रघुनाथ करौ अव । देवतजो परिदेवन को सब । औषधि ले निशि में फिरि पावहि । केशव सो सव साथ जियावहि ४८ सोदर सूरको देखतही मुख । रावण के पुरवै सिगरे सुख ॥ वोल सुने हनुमन क्खो प्रन । कूदिगयो जहँ औषधिको वन ४६ ॥ पज कहे सैन विक्रम पराक्रम ४६ प्रभु जो मैं ही नाका विभीषण को लगदानली जो प्रण है ताको पारो कहे पूर्ण करौ ४७ हे राध ! जो म चिनऊ कहे बिननी करत हौं सो नुम परो हे देव । सब मिलिकै परिदवन जो विलापहै ताको छोडिदह "विलाप परिदेवनमित्यमर "४८ प्रथम क्या है कि औषधि बैंकै निशिही में फिरि पावै ताको हेनु कहत