पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१८५

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रामचन्द्रिका सटीक। १८३ हैं सोदर जे लक्ष्मण हैं सूर जे सूर्य हैं तिनको मुख देखतही रावण के सिगरे सुख पुरवै कहे पूरित करि हैं अर्थ सूर्योदय भये लक्ष्मण न जी हैं या प्रकारको विभीषण को बोल सुनिकै निशिही में हम औषधि ल्याइ हैं हनुमत यह मण करयो ४६।। रागषट्पद ॥ करि आदित्य अदृष्ट नष्ट यम करौं अष्टवसु। | रुदन बोरि समुद्र करौं गधर्व सर्वपसु ॥ बलित अबेर कुबेर बलिहि गहि देउ इंद्र अब । विद्याधरनि अविद्य करौं बिन सिद्ध सिद्ध सब । निज होहि दासि दितिकी अदिति अनिल अनलमिटि जाइ जल । सुनि सूरज सूरज उवतहीकरौं असुर संसार बल ५० भुजंगप्रयातबद ॥ हन्यो विघ्नकारी बली वीर वामें । गयो शीघ्रगामी गये एकयामें ॥ चल्यो ले सबै पर्वत के प्रणामें । न जान्यो विशल्यौषधी कौन तामें ५१ ॥ रामचन्द्र सुग्रीव सों कहत हैं कि जो सूर्य उदयको मात होई तो जेते देवता हैं तिनकी सबकी आयुर्दशा फरौं श्री देवतन के शत्रु जे असुर दैत्य है तिन को पल संसार भरे में करि देउँ अर्थ तीनों लोकमें दैत्यन को राज्य करि देउँ दिति दैत्यन की माता अदिति देवतन की माता ५० वाम कहे कुटिल ऐसा जो हनुमान के सूर्योदय पर्यंत बिलँबाइबे के लिये कपट तपस्वी को रूप धरे मगमें बैठो कार्य को विनकारी कालनेमि राक्षस है ताको मारिकै एकयामैं पहरैगये कहे पीते औषधि पास गयौ विशल्यौ षधी कहे विशल्यकरणी औषधी ५१॥ लसें औषधी चारु भोव्योमचारी। कहैं देखि यों देवदेवा- |धिकारी॥ पुरी भौमकीसी लिये शीशराजै । महामंगलार्थी हनूमत गाजै ५२ लगीशक्ति रामानुजैरामसाथी जड़े बैगये ज्यों गिरे हैमहाथी॥ तिन्हें ज्याइवेको सुनो प्रेमपाली चल्यो ज्वालमालीहिले कीर्तिमाली ५३ किधों प्रातही काल जीमें विचांखो। चल्यो अशुलै अंशुमाली हाखोधिौजानज्या- लामुखी जोर लीन्हें । महामृत्यु जामें मिटै होमकान्हें ५४ ॥