पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१८६

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१८४ रामचन्द्रिका सटीफ। या पर्वत में ज्वलित औषधि सोहती हैं साको लै हनुमान् व्योमचारी आकाशमगगामी भयो देव औ दवाधिकारी गंधर्वादि अथवा देवदेव जे इंद्र है तिनके अधिकारी जे देवता है अर्थ औषधिनकी रक्षा में जिन देवतन को इंद्र अधिकार दिया है. अथवा देवदेव इद्र औ मंत्रादि में अधिकारी जे देवता हैं वे कहत हैं कि महामगल कल्याण के अर्थी जे हनुमान् हैं ते भौम जे मगल हैं तिनकी पुरीही को लिये जान हैं अनेक मंगल सम ज्वलित औषधीवृन्द हैं मंगलपद श्लेष है कल्याण औ भौमको नाम है ५२ [ति कहे तिन लक्ष्मणके ज्याइवेको औषधिन के ज्वालाकी माली कहे | समूह है जामें सो ज्यालमाली कहावै एसा जो पर्वत है तादी को लेके चल्यो है अर्थ ज्वलित है औषधीयद जामें ऐसो जो औषधिपर्वत द्रोणा- चला है ताहीको लियेजात हैं अथवा ज्वालकी है माली समूह जामें ऐसी जो विशल्यकरणी औषधी है वाहीको लै बन्यो है अथवा ज्वालमाली, जे [अग्नि है तिनको लै चल्यो है कीर्तिमाली हनुमान को विशेषण है ५३ नौ कि मावहि कहे सूर्योदय होतही लक्ष्मण को काल कहे मृत्यु जी में पिंचायो है सो पशुमाली में सूर्य हैं तिनको संहारि कहे मारिकै सूर्य के अंशु कहे किरण अथवा प्रभाव लिखे जात हैं जामें सूर्योदय न हो। अशु प्रभाकिरणयोरितिमेदिनी" ५४ ।। विना पत्र हैं यत्र पालाश फूले । रमें कोकिलाली भ्रमें भोर भूले॥ सदानद रामें महानंदको ले। हनूमंत आये बसंत मनो लै ५५ मोटक्छद || ठाढेभये लक्ष्मण मूरि छिये। दनी शुभशोभ शरीर लिये ॥ कोदड लिये यह वातररै। लकेशन जीत जाइ घरै ५६ श्रीराम तहीं उग्लाइलियो। सध्यो शिर माशिष कोरि दियो । कोलाहल यूथपयूथ |कियो । लका हहली दशरठ हियो ५७ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितागालक्ष्मणमूर्खामोचन नाम सप्तदश प्रकाश.॥१७॥