पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२०

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रामचन्द्रिका सटीक । १७ भक्तियुक्त ब्राह्मणनकी सेवा करत हैं अथवा शूद्रन के जीवमें शक्ति कहे देवी औ विपकी भक्ति जगति है शूद्रनको देवी औ ब्राह्मणनकी उपास वासना | उचित है या प्रकार आपने आपने धर्मसों युक्त चारोंवर्ण बहत हैं या ४२॥ सिंहविलोकितछंद ॥ अतिमुनि तन मन तहँ मोहि रह्यो। कछु बुधि बल वचन न जाय कह्यो॥ पशु पक्षि नारि नर निरखि तबै । दिन रामचन्द्र गुण गनत सबै ४३ मरहट्ठाछंद। अतिउच्च अगारनि बनी पगारनि जन चिंतामणि नारि। बहु सतमखधूपनि धूपित अंगनि हरिकीसी अनुहारि॥ चित्रीबहुचित्रनि परमविचित्रनि केशवदास निहारि । जनु विश्वरूपको अमल आरसी. रची विरंचि विचारि १४ सोरठा ॥ जग यशवंत विशाल राजादशरथ की पुरी ॥ चन्द्रसहित सबकाल भालथली जनु ईशकी ४५ ॥ ‘दिन कहे दिनप्रति ४३ बहुत जे अतिउच्च अपारघर हैं बहु, पदको सं- |बंध सर्वत्र है तिनकी जे बनी पगार परिखा हैं छारदेवालीति कहूं शिर- बन्दी कहत हैं तिनमें लगी अनेक पुरकौतुक देखिबेको चिंतामणि सदृश नारी स्त्री ठाढ़ी हैं चिंतामणि सदृश जिनको देखि मनोभिलाष पूरे होत हैं या प्रकारके स्त्री भवन हैं औ बहुत घर सत कहे उत्तम जे मखयज्ञ हैं तिनके धूपनकहे धूमन करिकै धूपित अंगनि सो युक्त हैं ते हरि विष्णु के अनुहारि हैं अर्थ श्यामरूप हैं ऐसे यज्ञशाला हैं औ बहुत घर परम विचित्र | कहे अद्भुत चित्रनिसों चित्रित हैं ति, मानो विरंचि ब्रह्मा विचारि एकाग्र चित्त करिकै विश्वरूप जो संसार है अथवा विराटरूप ताकी आरसी ऐना बनायो है जैसे ऐनामें विंब सदृश प्रतिबिंव देखिपरत है तैसे संसारमें जो वस्तु है सो सब मंदिरनमें चित्रित है ऐले चित्रशाला हैं पुरी में पैठि तिन्हैं विश्वामित्र निहारि कहे देखत भये ४४ जगमें विशाल सुंदर औ यशवंत कहे यशयुक्त जो राजा दशरथकी पुरी है सो सबकाल चन्द्रमा सहित मानो ईश महादेवकी भालथली है चन्द्र सरिस यश है विशाल दुवौ हैं यासों सदा निष्कलंक यशयुक्त 'पुरी को जनायो ४५ ॥ कुंडलिया ॥ पंडित अति सिगरी पुरी मनहुँ गिरागति 3