पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२०६

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परजी . रामचन्द्रिका सटीका गज मिदिपाल तारे हैं। मोगरा दिषिद तीर कटरा कुमुद नेजा मगद शिलागवाक्ष विटर बिदा हैं। अंकुश शरभ चक्र दधिमुख शेषशक्ति बाण तिन रावण श्रीरामचन्द्र मारे हैं १७ दोहा । दैभज श्रीरघुनाथ सों विरचे युद्धविलास ॥ बाहु अठारहयूथपनि मारै केशवदास ४८॥ रणरंगन कडे रणभूमिग य में अगदको सब अंगन सो मुरझाइक कहे पूच्छित परिकै अर्थ सर्बाग शिथिल करिकै लक्ष कहे निशाना की गतिमा बुझाइके कहे समुझाइक अर्थ निशाना सम वेषिक श्री और जो बानरगणन सों जब मुरे तौल रामनगरेसम जम्यो अर्थ लरन लन्यो४५ दीवान कबीरम्भावस भराल वम पर नर मर्म ममरयन ४६ प लय ४७ श्रीरामचन्द्रमा पुगीणसों परत है तासों १ एक तास पाग गएर धाप में ल यो है तासाग जाना ४८ ॥ गगोरन्छ ॥ युद्धजोई नहां माति जैसी करे ताहिताही 'विशाल नहीं । पाने अखले गा कादै सवैताहि हपार लागेनही दिौरिमामितिले बाण मोदडज्यों सडसजा पीर छ गाली । शैल भृगावली होडि गानो रही मेरी माशाली ४६ त्रिभगीकर। लामण शुभलक्षण बुद्धिजिवाण राणसों रिम छोडिद। पटनापनि जे भिरखडै ते फिर खडै गोमन ॥ यद्यपि पिडिन गुए गणमाडेत रिपुअलखरित भूलिरहै । तजि मनपचनासूरमहायहरपुनायक्सो वचन ५० ठाडो रणमानहन माजन तनमनलाजत सपलाया । सुनि श्रीरघुना न मुनिजनतदन दुष्टनिझदन रासदायक । अब टरैन टालो मरे न मात्र होइठि हासो धरि शाया। रावण नहिं मारत देव पुकारत है अतिमारत जगनायक ५१ ॥ -- acope