पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२१३

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रामचन्द्रिका सटीक। २११ को ईश महादेव सुरईश विष्णु जगदीश ब्रह्मा के सम दखो को जानी इनको विशेषिकै प्रभु कहे स्वागी लेखौ अर्थ स्वामी सम इनकी रोवा करी वधुसम न जानो इति भागार्थ २६ रूपस्वरूप रेख चिह्न तिनसों स्यो कडे सहित जी उठे सो उपाय करौ या प्रकार रामचन्द्र देवराज जे इन्द्र हैं तिन सों को सो रामचन्द्रकी आज्ञासों सजीवनी आदि उपायसों सबको जिभाइकै रामचन्द्र के प्राइ पाइ लगे २७ भरतकी प्रतिज्ञा है कि जो चौदह वर्ष में रामचन्द्र न हैं तो हम नहीं जी, ता अवधि की मर्यादा के लिये पुष्पक में चढ़ि अतिशीघ्र चले अथवा अवधि अयोध्या २८ ।। चचरीछद । सेतु सीतहि शोभना दरशाह पचवटी गये। पाइलागि अगस्त्यके पुनि अत्रियते बिदा भये । चित्रकूट विलोकिकै तबहीं प्रयाग विलोकियो। भरद्वाज बसें जहां जिनतेन पावन है बियो २६ राम-तारकछंद॥चमकै युति सूक्षम शोभर्ति बारू । तन हैं जन सेवत हैं सुर चारू । प्रति- बिम्बित,दीप दिये जलमाहीं । जनु ज्वालमुखीन के जाल निहाही ३० जलकी युति पीत सितासित सोहै । बहुपातक घात करे यक कोहै ।। मदएण मलै घसि कुंकुम नीको । नृप भारतखंड दियो जनु टीको ३१ ॥ थियो कहे दूसरो २६ तनु कहे सूक्ष्म ३० यफ कहे केवल जो बहुत पातक हैं ताके घात कहे नाश करे को कहे फरिये के अर्थ एणमद जो कस्तूरी है भो मलयाचदन श्री कुकुम केसरि को घसिक भारतखडरूपी जो रूप राजा है ताने मानो मारणं तिलक दियो है जाको देखतही पातकन को नाश होत है औरो राजा शत्रु के नाश करिबे को मारणतिलक शिर में देते हैं ना देखतही शत्रु मरत है मारण मोहनोचादनादि षडकर्म की तिलकादि क्रिया मंत्रशास्त्र मो प्रसिद्ध है भारतखडवासिन को पातक दरिंद्रादि पौड़ा करत हैं सोई शत्रुता जातो.३१ ॥ लक्ष्मण-दंडक || चतुरवदन पंचवदन षटबदन सहसव- दिनहू सहसंगनि गाई है। सातलोक सातदीप सातह गरे , 4