पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२२९

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रामचन्द्रिमा सका। हनि दुष्ट पनि निकै । त्यहिकाल लक्ष्मणको जिगाड जियाहया हम जानि ५४ दोहा।। अपने प्रभुको श्रापनो कियो हमारो काज ।। ऋपिज को हनुमतमों भक्तनको शिर- ताज ५५ पामरकद । वीर धीर साहसी बली जे विक्रमी शमीसाधु सर्वदा सुखी तपी जपी जे गयमी ॥ भोगभाग योगताग वेगवन है जिते । वायुपुत्र रामकाज वारि डारिये तिने ५५दोहा । सीतापाई रिपु हत्यो देख्यो तुम अरु गेहु ।। रामायण जयसिद्विको पिसिर टीका देहु ५७ यहि विधि कपिकुलगुणनको कहत हुते श्रीराम ।। देख्यो आश्रम भरत को केशर नदीग्राम ५८॥ श्रान कह पजे ५३ दृष्टपदन कालनेगि जानो लक्षाणको जियाइ हम को इम नियायो लक्ष्मणके मरे राम न भी है यह जानि ५४ सब गान के शिरता है इति भागार्य ५ विगी उपायी भाग कहे भाग्य प्रत्यगत भागाद गांची शब्द जानौ राममान में वागुपुत्र पर इत्पादिन वीराकि सावारिचारियन है अर्थ जो रापमान वायुपत्र संवारयो है तो उन रिविनका काहू को सँवारपो 7 रॉवरतो ५६ रामारण कररारर७1५८ ॥ 0 सुदरीद ॥ पुष्पकते उतरे रघुनायक । यक्षपुरी पठये सुम्बदायक || सोदरको भालोकित यों थल । भूलिरह्यो कगि रानाले दल ५६ कचनको अतिशुद्ध सिंहासन | राम रच्यो ताहि ऊपर प्रासन | कोपरहीरनको अतिकोमल । नाम कुकुम बदन को जल ६० दोहा ॥ चरणकमल श्री राग भरत पसारेबाप ॥ जाते गगादिकनको मिटरा सफल गताप ६१ पक जवाटिकाछद ॥ सूरज चरणविभीषण के अति। आपुहि भरत पसारि महामति ॥ दुदुभि धुनि करिकै