पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२३०

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२२६ . रामचन्द्रिका सटीक। बहुभेवन । पुष्पवरपि हर दिवि देवन ६२ दोहा॥ पीछे दुरि शत्रुघ्नसन लक्ष्मण ध्वाये पाइ ॥ पग सौमित्रि पखारियो भंग दादिके श्राइ ६३ तोमरबद ॥ शिरते जटानि उतारि । अंग अगरागनि धारि ॥ तन भूषि भूषण वस्त्र । कटिसों कसे सब शस्त्र ६४ दोहा ॥ शिरते पावन पादुका लेकरि भरत वि- [चित्र ॥ चरणकमल तरहरि धरी हँसि पहिरी जगमित्र ६५ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामाणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायांरामस्यनन्दिग्राम- प्रवेशोनामैकविंशतितमः प्रकाश ॥ २१॥ यक्षपुरी कुमेरपुरी ५६ कोमल कहे चिकण ६० । ६१ । ६२ सौमित्र शत्रुघ्न ६३ । ६४ तरहरि कहे तरे. ६५ ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय अनजानकीप्रसाद निर्मितायारामभक्तिप्रकाशिकायामेकविंशतितमः प्रकाशः ॥२१॥ दोहा ।। या बाइसें प्रकाशमें अवधपुरीहि प्रवेश ॥ पुर- वासिन मातानिसों मिलिबो रामनरेश १ सुंदरीचंद ॥ अवधपुरी कह राम चले जब। ठौरहि ठौर विराजत हैं सब ॥ भरत भये शुभ सारथि शोभन । चमर धरे रविपुत्र विभीषन २ तोमरबंद ॥ लीनी छरी दुहे वीर । शत्रुघ्न लक्ष्मण धीर ॥ टारें जहां तह भीर। श्रानंदयुक्त शरीर ३ दोधकछद ॥ भू- तलहू दिवि भीर विराजै । दीह दुहूँ दिशि दुंदुभि बाजे । भाट भले बिरदावलि गावें ।मोद मनो प्रतिबिम्ब बढ़ावें ४ भूतलकी रज देव नशावै । फूलनकी बरषा बरषावै । हीन- |निमेष सवै अवलोकैं। होड़ परी बहुधा दुहुँ लोके ५ ॥ १।२।३ देवतनके प्रतिविम्ब सम अवधवासी अवधवासिनके प्रति विभव सम देवता मोद बढ़ावत हैं अर्थ जो आनद क्रिया हास्यादि अषध-