पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचन्द्रिका सटीक। २३१ के करषा ११ पद्मावतीबद ।। रघुनदन आये सुनि सब धाये पुरजन जैसे तैसे । दर्शनरस भूले तन मन फूले बरणे जाहिं न जैसे ॥ पतिके सँग नारी सब सुखकारी रामहिं यों दृग जोरी । जहें तहँ चहुँ ओरनि मिली कोरनि चाहति चद- चकोरी १२ पद्धटिकाछंद ॥ बहुभांति रामप्रति द्वार द्वार। अतिपूजत लोग सबै उदार ॥ यहि भांति गये नृपनाथ गेहें। युतसुंदरि सो दरस्यो सनेह १३ दोहा । मिले जाय जननी- नको जवहीं श्रीरघुराइ ॥ करुणारस अद्भुत भयो मोपे करो न जाइ १४ सीता सीतानाथजू लक्ष्मणसहित उदार ॥ सबन मिले सबके किये भोजन एकहि बार १५ ॥ अति सुंदररूप भातिथ्यसम है १० यासों या जनायो कि जेती दूरि देविनको विमान है तेतेई ऊंचे अवधवासिन के गृह हैं ११ । १२ नूपनाथ दशरथ १३ । १४ ।१५।। सोरठा ॥ पुरजन लोगं अपार यहई सब जानत भये ॥ हमहीं मिले अगार पाये प्रथम हमारही १६ मदनहराबद ।। सँगसीतालक्ष्मण श्रीरघुनन्दन मातनके शुभपांह परे सब दु:ख हरे। आंसुन अन्हवाये भागनि भाये जीवन पाये अकभरे अरु अकवरे । ते वदन निहारें सरबसु वारें देहिं सबै सबहीन घनो अरु लेहिं घनो। तन मन न सॅभारे यहै | बिचारै भाग बड़ो यह है अपनो किधों है सपनो १७ स्वा. गताछंद । घामधामप्रति होति बधाई। लोकलोक तिनकी धुनि छाई ॥ देखिदेखि कपि अद्भुत लेखें । जाहिं यत्र तित रामहिं देखें १५.दौरि दौरि कपिरावर भावें। बारबार प्रति धामानि धावें ॥ देखिदेखि तिनको दै तारी । भौतिभांति बिहसें पुरनारी १६ ॥