पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२४

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रहो औ . रामचन्द्रिका सटीक । जिन करिकै अथवा विमानीकृत वाहिनीकृत हैं राजन के हंस जीव जिन करिकै अर्थ शत्रु भय सों मित्र प्रेमसों मनमें चढ़ाये रहत हैं विबुध देवता श्री | पण्डित दिलीपकी स्त्री को सुदक्षिणा नाम रह्यो ताके पतिव्रत को बल जो दक्षिणा दान द्रव्य है वाहिनी नदी औ चमू छनदा रात्रि न हो हे मिय ! जाकी सूर्य के अमल में अर्थ सूर्य के प्रकाशमें रात्रिको नाश होत है अथवा बनदान कहे जलांजलिदान औक्षणक्षण प्रति दानही प्रिय जिनको क्षणक्षण में दानदीको करत हैं गङ्गाजल सगरके सुतनके तारिबे को भगीरथके पीछे पीछे आयो है औ राजा कुल पंथगामी हैं श्लेषधर्मोपमा है कोऊ परंपरित रूपक कहत हैं ११ । १२ ऋषिनों मित्र सूर्य सम हैं १३ दान- रूपी जो मानस मानगर है ताके तुम सही अर्थ दानही में है विहार जिनको बड़े दाताहौ अवतंस कर्णभूषण १४ ॥ राजा-अमृतगतिछंद । सुमति महामुनि सुनिये । तन | मन धन सब गुनिये ॥ मनमहँ होइ सो कहिये । धनि जो आपुन लहिये १५ ऋषि-दोधकछंद ॥ राम गये जबते वन माहीं। राकस वैर करें बहुधाहीं ॥रामकुमार हमें नृप दीजै। तौ परिपूरण यज्ञकरीजै १६ तोटकछंद। यह बात सुनी नृप- नाथ जबै । शरसे लगे पाखर चित्तं सबै ॥ मुखते कछु बात न जाइकही । अपराध विना ऋषि देहदही १७ राजा- अतिकोमलकै सब बालकता। बहु दुष्कर राक्षस घालकता॥ हमहीं चलिहें ऋषि संग अबै । सजि सैन चलै चतुरंगसबै १८ विश्वामित्र-षट्पद ।। जिन हाथन हठि हरषि हनत हरिणी रिपुनन्दनि। तिनन करत संहारं कहा मद मत्तगयन्दनि ।। जिन बेधत सुख लक्षलक्ष नृपकुँवर कुँवरमनि । तिन बाणनि वाराह बाघ मारत नहिं सिंहनि । नृपनाथ नाथ दशरथ सुनिय अकथकथा यह मानिये । मृगराज राजकुल कलश अब बालक वृद्ध न जानिये १६॥