पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२४३

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२४२ रामचन्द्रिका सरोक। पशिगुमी बाध पा ज्ञान है नाफे काहिय का विश्शामित्र कही पहे कथा १ राज्यश्रीको दुख पहि अथ गाम ससार का दुख साचत हैं जीर मररा पा नही नजत मरिने फिरि जन्मन को भाजदा कहे प्राप्त होत है २ य म जनन मरण नारनको दु स देखारत के प्रथम तो जाय उदर में परत है गाम श्रावत है तहा स बहुत दुख सो निमरत है अथ जम में परोसान है भी मन जा मग्ण है नाहू में बड़ी पीर कई मष्ट हानश्री नाही २६ जनन मरण ते अन्यत्र पथ जीपत में तनके ओर उपनार के व्यवहार है तिन सहत जीवको पीर है सो आगे हैं ' उपचारस्नु से गाया व्यवहारोपचारयारियभिधानपिन्ता मणि ३ दे बदन मा शिशना अवस्थाके दायार में प्राप्त जीपको दु ग्व करत है त कहे तेई जीव रोशन कहे पाल्यथवरवा म पोच रहे युरो बिगादि भी गली पिकनिय में नई जान गो वस्तु पारत है ताको लक भानन ख मा डारि लेत तदा विपादि ग्रहण में जीत्र यो प साहाशि है इनि भाग परि त कह नेई जीर कलू बड़ेई यह पड हो यान हे अज्ञान म चढे रहे गैलन में खेलत फिरत हैं अशाा में चढ़ कर या जनारो किसे नाहन में च* काऊ भारती यस्त नही तेरे नानप गदा म चरिसरामें धारत जीव धरत नही है ४ ता खेलिबक लिए माता पिता मन करता है नासो वडा दुख होत, ओं गुरु सलिए हुडा पहाचा चान है नासौं अनि दुखी होत है श्री भूख औ प्याम श्री नार का हा जोवत रहे रसत थध अपन पास श्राय भूख ग्यास नींद का नहा गनन प्रथा भुख पारा Iद को नहीं जोचत कहे चाहत तैसे सर अवस्था क ऐस दहव्यबहारन म जी को एमी पीड़ा होति है इति भाराधे शिशुत्व शैशव मान्यमिन्यमर ॥ जारति चित्त त्रिता दुचिताई । दीह तुचा अहिकोप व गाई || कामसमुद्रझकोरनि झल्यो । यौवनजोर महाप्रभु भूल्लो ६ बूमसो नीलनिचोले में सोहै । जाड छुई न पिलो- क्न मोहै ।। पानक पणय शिक्षा पनचारी ! जारति है नर को घरनारी॥ तीनि बदर ग उगवत्या रे व्यवहार को दुख कहत योग्न "