पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२६५

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रामचन्द्रिका सटीक । २६५ मांगल्य औ सुंदरता जो सब कहे पूर्ण है तिनके संग अपनी औ रविकी अंशु किरणि लैकै मानों निशिनाथ चन्द्रमा रामचन्द्र को सेवत है चन्द्र- किरणिसम मुक्लन की किरणि हैं रविकिरणिसम औ जटित जे माणिकादि मणि हैं जिनकी किरणि हैं औ शीतलतादि है ही हैं २४ ॥ सुंदरीछंद ।। ताहि लिये रविपुत्र सदा रत । चमर विभी- पण अंगद ढारत ॥ कीरतिले जगकी जनु वारत । चंदक चंदन चंद सँवारत २५ लक्ष्मण दर्पणको दिखरावत । पाननि लक्ष्मण बंधु खावत ॥ भर्थ लैलै नरदेव सदा रत । देव अदेवनि पायन पारत २६ दोहा ॥ जामवंत हनुमंत नल नील मरातिब साथ ॥ छरी छबीली शोभिजै दिग्पालन के हाथ २७ रूप बहिक्रम सुरभिसम वचन रचन बहुभेव ॥ सभा मध्य पहिचानिये नर नरदेवन देव २८ आई जव अभिषेककी घटिका केशवदास॥बाजे एकहि बार वहु दुंदुभि दीह अकास २६॥ रत कहे अनुरक्त है कीर्तिसम चमर है फिरि चमर कैसे हैं कि चंद्रक जो कपूर है औ चंदन औ चंद्रमा है सदा आर्त कहे पीड़ित जिनसों अर्थ जिनकी श्वेततासों अपनी श्वेतता हीन समुझि चंद्रकादि दुःखी होत हैं२५।२६माही मरातिवप्रसिद्ध है छरी आशा २७ सुरभि सुगंधि२८॥२६॥ झूलनाछंद ॥ तब लोकनाथ विलोकिकै रघुनाथ को निज हाथ । सविशेष सों अभिषेककी पुनि उच्चरी शुभ गाथ ॥ ऋषिराज इष्ट वशिष्ठसों मिलि गाधिनंदन आइ । पुनि बालमीकि वियास आदि जिते हुते मुनिराइ ३० रघु- नाथ शंभु स्वयंभुको निज भक्ति दी सुख पाइ । सुरलोकको सुरराजको किय दीह निरभय राइ ॥ विधितो ऋषीशनसों विनय करि पूजि नौ परि पांइ । बहुधा दई तपवृक्षकी सब सिद्ध सिद्ध सुभाइ ३१॥