पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२७२

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२७२ रामचन्द्रिका सटीक । जीव चौदह लोक । ठौर जाकहँ कहुँ न ताकहँ देत अपनो अोक २३ छाडि ऋषि दिज देवऋषि ऋषिराज सब सुख पाइ । प्रकट सकल सनौढियनके प्रथम पूजे पाइ ॥ छोड़ि पितर त्रिशंकु है विपरीत यद्यपि देह । अवध केशव जात शू- कर श्वान स्वर्ग सदेह २४ एक पल उर मांझाये हरत सब संसार । प्रायकै संसारमें इन हरेव भूतलभार ॥ शेष शंभु स्वयंभु भाषत निगम नेति न जास । ताहि लघुमति बरणि कैसे सकत केशवदास २५ याहि विधि चौदह भुवनके गाव मुनि यशगाथ । प्रेमसह पहिराइ सबको बिदा किय रघु. नाथ २६ झूलनाछंद ॥ अभिषेककी यह गाथ श्रीरघुनाथकी नर कोइ । पल एक गावत पाइहै बहुपुत्रं सम्पति सोइ ॥ जरि जाहिंगी सव वासना भवविष्णुभक्त कहाइ। यमराजके | शिर पाउँदै सुरलोक लोकनि जाइ २७॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामाणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायां ब्रह्मादिस्तुति- वर्णनन्नाम सप्तविंशः प्रकाशः॥२७॥ अपलोक कई अपगतलोक अर्थ छोटो लोक औ कलंक २३ ऋषिसा- मान्य तपस्वी द्विजऋषि कहे ब्राह्मणश्रेष्ठ देवऋषि ब्रह्मऋषि राज वशि- ष्ठादि २४ । २५ । २६ । २७ ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाथ जनजानकीप्रसाद- निर्मितायांरामभक्तिप्रकाशिकायां सप्तविंशः प्रकाशः ॥२७॥ दोहा ॥ अट्ठाइसे प्रकाशमें वर्णन बहुविधि जानि ॥ श्रीरघुवरके. राजको सुर नरको सुखदानि १ भुजंगप्रयात छंद ॥ अनंता सबै सर्वदा शस्ययुक्ता । समुद्रावधिः सप्त ईती विमुक्ता ॥ सदा वृक्ष फूले फले तत्र सोहैं। जिन्हें अल्पधी