पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२७५

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२७३ रामचन्द्रिका सटीक । कल्पसाखी विमोहें २ सबै निम्नगा क्षीरके पूरपूरी । भई काम- गोसी सबै धेनु रूरी ॥ सबै वाजि स्वर्वाजिते तेजपूरे । सबै दंति स्वदतिते दर्प रूरे ३ सबै जीव हैं सर्वदानन्द पूरे । क्षमी |संयमी विक्रमी साधु शूरे ॥ युवा सर्वदा सर्व विद्याविलासी । | सदा सर्वसंपत्ति शोभाप्रकासी ४ चिरंजीव संयोग योगी अरोगी । सदा एकपत्नीव्रती भोगभोगी ॥ सबै शील- सौंदर्यसौगंधधारी । सबै ब्रह्मज्ञानी गुणी धर्मचारी ५ ॥ १ जा रामचन्द्र के राज्यमें समुद्रावधि कहे समुद्रपर्यंत अवंता जो पृथ्वी है सो सप्त जे शुकादि ईति हैं तिनसों विमुक्त रहित सस्य धान्यसों युक्त है “ अतिवृष्टिरनाहाष्टषकाः शलभाः शुकाः । स्वचक्रम्परचक्रश्च सप्तैता | ईतयः स्मृताः " जिन क्षन को देखि अल्पबुद्धि जे कल्पशाखी कल्पवृक्ष हैं ते विमोहैं कहे मोहित होत हैं कि ऐसे हम न भये अथवा अल्पकी बुद्धिसों अर्थ हम इनसों लघु हैं या बुद्धिसों मोहत हैं २ निम्नगा नदी क्षीर जल स्वर्वाजि उच्चैःश्रवा (उच्चैःश्रवसी यस्य, उचैः भृणोतीति वा) स्वदति ऐरा- वत दर्पमद ३ । ४ संयोमी कहे सदा स्त्रीसंयोगसों युक्त सौगंधपद ते स्वाभाविक अंगसुगंधि जानौ ५॥ सबै न्हान दानादि कर्माधिकारी । सबै चित्तचातुर्य चिंतापहारी ॥ सबै पुत्रपौत्रादिके सुक्ख साजै । सबै भक्त माता पिता के विराजै सबै सुंदरी सुंदरी साधु सोहैं। शची सी सतीसी जिन्हें देखि मोहैं । सबै प्रेमकी पुण्यकी सद्मिनी सी। सबै चित्रिणी पुत्रिणी पद्मिनीसी ७ भ्रमै संभ्रमी यत्र शोके सशोकी । अधमैं अधर्मी अलोके अलोकी ।। दुखै तो दुखी ताप तापाधिकारी । दरिद्रै दरिद्री विकारे विकारी - चौपाई | होमधूम मलिनाई जहाँ । अति चंचल चलदल हैं तहां ।। बालनाश है चूडाकर्म । तीक्षणता श्रायुधके धर्म लेत जनेऊ भिक्षादान । कुटिल चाल सरितानि वखान ॥