पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२८

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२५ रामचन्द्रिका सटीक । जा वनमें महादेव कामको जास्या है ताको कामवन नाम है अथवा काम- वन कहे अभिलापको दाता वन ता वन में रामचन्द्र सन वास कहे ऋषिनके वास कुटीति औ तरु वृक्ष देख्यो अथवा वास तरु सुगंधयुक्त तरु भैनमय कहे कामस्वरूप ता वनमें ईश महादेव जहां जा स्थान में कामको जास्यो है तास्थानको देखि छोडिकै विश्वामित्रको यज्ञथल जाइकै देख्यो ३० ॥ ३१॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानीजानकी मनिताजनानकीप्रमा निर्मितायां गलिशानात द्वितीयःप्रकाशः॥२॥ दोहा॥कथा तृतीय प्रकाश में वन वरणन शुभ जानि ॥ रक्षण यज्ञ मुनीशको श्रवण स्वयंवर मानि १ षट्पद ॥ तर तालीस तमाल ताल हिंताल मनोहर । मंजुल बंजुल ति- लक लकुचकुल नारिकेर वर ॥ एला ललितलवंग संग पुंगीफल सोहै । सारी शुककुल कलित चित्त कोकिल अलि मोहै ॥ शुभ राजहंस कलहंसकुल नाचत मत्त मयूर गन । अतिप्रफुलित फलित सदा रहै केशवदास विचित्र वन र सुप्रियाचंद ॥ कहुँ दिजगण मिलि सुख श्रुतिपढ़हीं। कहुँ हरिहरि हरहर रटरटहीं ॥ कहुँ मृगपति मृगशिशु पय पियहीं। कहुँ मुनिगण चितवत हरि हियही ३ नाराषचंद ।। | विचारमान ब्रह्मदेव अर्चमान मानिये । अदीयाव दुःख सुःख दीयमान जानिये ॥ दण्ड्यमान दीन गर्व दरड्य मान भेद वै । अपव्यमान पापग्रन्थ पठ्यमान वेद वै ४॥ १ तालीस वृक्षविशेप हिताल खजूरि बंजुल अशोक लकुच वड़हर २ | मृगपति पदते सिंहकी स्त्री पुरुष जातिमात्र जानौ अर्थ सिंहिनिन को पय दूब मृगवालक पिस्त हैं यासों या जनायो कि जहां सहजहूं वैर नहीं है कृत्रिमको कहावतहै औ कहूँ तेई मृगशिशु मुनिनके हियको हरिकै मुनिनके ओर चित- वत हैं यासों मृगबालकन की अति सुंदरता जानो ३ जहां सदा ब्रह्म जो | वेद है सोई विचार्यमान है विचारयो जात है अथवा परब्रह्म देव पदते यहां विष्णु जानौ अथवा सदेव यासों या जनायो कि सुदेव सेवा में सब रहत हैं