पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२८३

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रामचन्द्रिका सटीक । २८३ हारि ॥ षट ऊपर तिनके तहां चित्रे चित्र विचारि २८ चामर छंद ॥ भोज एक चौकमध्य दूसरे रची सभा । तीसरे विचार मंत्र और नृत्यकी प्रभा॥ मध्यचौक में तहां विदेहकन्यका बसै । सर्वभाव रामचन्द्रलीन सर्वथा लसै २६ ॥ राजलोक कहे राजभवन २६ रामचन्द्रजू राजलोकके आसपास मुदेश कहे आछो कोट देखत भये अर्थ आसपास कोट है ताके मध्यमें राजलोक है ता कोटके पूर्वादि दिशामों क्रमसों चारों ओर चारिपौरि कहे द्वार हैं पूर्व दिशामों सिंह पौरिहै दक्षिण दिशामों दंतिपौरि है पश्चिमदिशामों वाजिपौरि है उत्तर- दिशामों नंदिपौरि है इहां सिंहादिपौरिसों सिंहादि स्वरूपयुक्त पौरि जानौ२७ ताकोटके मध्यहि कहे मध्यमें सात लोकके तरहारि कहे सतमहताके तरे पांच चौक अँगनाई रचो है अर्थ अँगनाई विशिष्ट पृथक् पांच भवन बने हैं | सतमंजिला हैं तिनके कहे तिन भवनन के षट्ऊपर केहे छठये लोकके जे ऊपर कहे छति है तहां विचारिकै कहे जहां जैसो चाहिये तैसो तहां समु. झिकै चित्र चित्रे हैं और अर्थ पांच चौक मध्यमें रच्यो है ते कैसे हैं सातों लोक जे अतल १ वितल २ सुतल ३ तलातल ४ महातल ५ रसातल ६ पाताल ७ हैं तरहारि कहे अधन्यून जिनते अर्थ सातौलोकमें ऐसे धाम नहीं हैं. औ षद् कहे छालोक जे भू १ अंतरिक्ष २ स्वर्ग ३ ब्रह्मलोक ४ पितृलोक ५ सूर्यलोक ६ तिनहूं के ऊपर है.अर्थ श्रेष्ठ है यासों या जनायो कि सातवों लोक जो वैकुंठ है ताके सदृश है तहां विचारिकै अर्थ यथोचित स्थानमें चित्र चित्रे हैं अथवा सात लोक जे तरहारि कहे तरेके हैं अतलादि औ पट् जे भूलोकादि हैं तिनहूं के ऊपर जो लोक है वैकुंठ सो विचारिक तिनके कहे ता वैकुंठ के धामनके चित्रसम चित्रे हैं अर्थ वैकुंठ धामन के प्र- तिमा बने हैं अथवा विचारिकै तिनके वैकुंठ धामनके चित्र चित्रे हैं अर्थ जे चित्र वैकुंठ धामन में हैं तेई इनमें चित्रे हैं २८ यामें पांचहू चौकनको प्रयोजन कहत हैं और चौथे चौक, नृत्यकी प्रभा रची इल्यर्थः २६ ॥ दोधकछंद ।। मंदिर कंचनको यक सोहे । श्वेत तहां छ- तुरी मन मोहै । सोहत शीरष मेरुह मानों । सुंदर देव दि. वान बखानों ३० मंदिर लालनको यक सोहै । श्याम तहां