पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२८४

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२८४ रामचन्द्रिका मटीक। छतुरी मन मोहै । ताहि यहै उपमा सब साजै । सूरज अंक मनों शनि राजे ३१ मंदिर नीलनको यक सोहै । श्वेत तहां छतुरी मन मोहै ॥ मानहुँ हंसनकी अवलीसी । प्राविटकाल उड़ाइ चलीसी ३२ मंदिर श्वेत लसै अति भारी । सोहति है छतुरी अति कारी ॥ मानहुँ ईश्वरके शिर सोहै । मूरति राघवकी मन मोहे ३३ तोटकछंद ॥ सब धामनमें यक धाम बन्यो । अतिसुंदर श्वेत स्वरूप सन्यो॥ शनि सूर बृहस्पति मंडलमें । परिपूरण चन्द्र मनों बलमें ३४ चौपाई ॥ बहुधा मंदिर देखे भले । देखन शुभ्रशालिका चले ॥ शीत भीत ज्यों नेक न त्रसे। पलुक वसन शालामहँ लसे ३५ जलशाला चातक ज्यों गये । अलि ज्यों गंधशालिका ठये॥ निपट रंक |ज्यों शोभित भये । मेवाकी शालामें गये ३६ ॥ तिन पांचहू मंदिरन को रूप क्रमसों पांच छंदनमों कहत हैं मेरुह कहे मेरु के शीर्ष कहे अग्रभागमें देवदिवान कहे देवसभा है ३० । ३१ मेघन करि आच्छादित श्याम प्राविट्काल कहे वर्षाकाल सम नीलमणिनको मं- दिर है हंसावली सम श्वेत छतुरी है ३२ ईश्वर महादेव ३३ शनैश्चरादि के मंडलमें परिदृष्टयादि दोषसों संयुक्त हैकै चन्द्रमा हीनबलहू लैजात है तासों चल में कहे बलाधिक्यसों युक्त को इहां शनि सूर बृहस्पति मंडल में कहे शनि सूर बृहस्पति आदिके अंडल में जानौ श्याम मंदिर शनैश्चर है अरुण मंदिर सूर्य है सुवर्णमंदिर बृहस्पति है श्वेतमंदिर शुक्र है ३४ शीत जो जाड़ो है तासों भीत जो प्राणी हैं सो जैसे अनेक वस्त्रन में प्रसन्नचित्त होत हैं या प्रकार धनन के देखिये में नेत्र से कहे न ऊंचे अर्थ प्रसन्नचित्त है सब बसनशाला के वस्त्र देख्यो इत्यर्थः याही विधि जलशालादि में चातकादि सम जाइब में केवल चित्तवोप की समता जानौ ३५ । ३६ ॥ चतुर चोरसे शोभित भये । धरणीधर धनशाला गये ॥ माननीन कैसे मनमेव । गये मानशालामें देव ३७ मंत्रिनस्यो