पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२८५

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२८५ रामचन्द्रिका सटीक । बैठे सुख पाइ । पलुक मंत्रशालामें जाइ॥ शुभ शृंगारशाला को देखि । उलटे ललित बयनसे लेखि ३८ तोटकछंद ॥ जब रावरमें रघुनाथगये। बहुधा अवलोकत शोभ भये॥ सब चंदन की शुभ शुद्धकरी। मणि लालशिरानि सुधारिधरी ३६ बरँगा अतिलाल सुचंदनके। उपजे वन सुंदर नंदनके॥गजदंतनकी शुभ सींक नई। तिन बीचन बीचन स्वर्णमई ४० तिनके शुभ छप्पर छाजत हैं । कलशा मणिलाल विराजत हैं ॥ अति अद्भुत थंभनकी दुगई। गजदंत सुचंदन चित्रमई । तिनमांझ लसैं बहु भायन के । शुभ कंचन फूल जरायनके ४१ ॥ मानिनीन के सदृश इत्यर्थः ३७ जा शाला में स्त्रीजन श्रृंगार करती हैं अथवा भूषणादि शृंगारवस्तु जा शाला में धरे हैं ताको देखतेही प्रेमातुर है रावर में जाइबेकी इच्छा करि नयनसम कहे नयनपूनरीसम उलट कहे फिरे नयनपूतरी अतिशीघ्र फिरति है तैसे अतिशीघ्र फिरे जानौ ३८ रावर स्त्रीभवन शिरा टोपी ३६ । ४० तिनके कहे गजदंत सुवर्णादि के अथवा तृणके दुगई द्विकनाई अथवा द्वैखंभ एक में मिलाइ लागत हैं सो दुगई कहावत है ४१॥ रूपमालाछंद ॥ वर्णवर्ण जहां तहां बहुधा तने सो वि. तान । झालरें मुकतानकी अरु झूमका बिनमान ॥ चौक मणि नीलकी फटिकानके सुकपाट । देखि देखि सो होत हैं सब देवता जनु भाट ४२ श्वेत पीत मणीनकी परदा रची रुचि लीन। देखिकै तहँ देखिये जनु लोल लोचन मीन ॥शुभ्र हीरनको सुआँगन है हिंडोरा लाल । सुंदरी जहँ झूलहीं प्रतिबिम्बके जहँ जाल ४३ स्वागताछंद | धामधाम प्रति आसन सोहैं । देखि देखि रघुनाथ विमोहैं । वरणि शोभ कवि कौन कहैजू । यत्र तत्र मन भूलि रहैजू ४४ दोहा।।