२६ रामचन्द्रिका सटीक । कोऊ कुदेव यक्षिणी आदिकी सेवा नहीं करत नौ दुःख अदीयमानहै कोऊ काहूको दुःख नहीं देत सुख दीयमान है औ दीन अदंडमान है दीनको कोऊ दंड ताड़न नहीं करत औ वै कहे निश्चयकरि गर्व औ भेद दंडमान है पापग्रंथ मारण मोहनादि के ग्रंथ अपठ्यमान हैं कोऊ नहीं पठत ४ ॥ विशेपछंद ॥ साधुकथा कथिये तहँ केशवदास जहां। विग्रह केवल है मनको दिनमान तहां । पावन वास सदा ऋषिको सुखको वरषै । को वरणे कवि ताहि विलोकत जी हरपै ५ चंचला ॥ रक्षिबेको यज्ञकूल बैठे वीर सावधान। होन लागे होमके जहां तहां सबै विधान ॥ भीमभांति ताड़का सो भंग लागि कर्नाइ।बान तानि रामपैन नारि जानि छांडिजाइ ६ ऋषि-सोरठा॥ कर्म करति यह घोर विप्रनको दशहूदिशा ॥ मत्त सहस गज जोर नारी जानि न छोड़िये७ राम-शशिवदना ॥ सुनु मुनिराई । जग दुखदाई ॥ कहि अब सोई । जेहि यश होई ८ ऋषि-कुंडलिया ॥ सुता विरोचनकी हुती दीरघ जिह्वा नाम । सुरनायक वह संहरी परमपापिनी वाम ॥ परमपापिनी वाम बहुरि उपजी कवि माता। नारायण सो हती चक्र चिन्तामणिदाता॥नारायण सो हती सकल द्विजदूषणसंयुत । त्यों अब त्रिभुवन नाथ ताड़का तारहु सह सुत ॥ सायुकथा उत्तमकथा विष्णुविषयकिनी आदि अथवा साधु जे संतजन हैं नारदादि तिनकी कथा तहां तेहि आश्रममें मुनिजनन करिकै कथिये कथन करियत है औ जहां केवल मनहींको निग्रहहै मन इंदिनको राजा है मनके निग्रहसों सब इंद्रिनको निग्रह जानौ औ तहां मान दिनहीके है और काहूके नहींहै दिनपक्ष में मान प्रमाण दिनमान केतौ है यह पूछिबेकी रीति लोकमें प्रसिद्ध है अन्यत्र मानगर्व परिसंख्यालंकार है अथवा दिनहीको मान आदर है यज्ञादि सत्कर्म दिनही में होते हैं तासों ।। ६।७।८ विरोचन बलिके पिताकी सुता दीजिह्वा नाम पापिनी रही ताको सुरनायक इंद्र मास्यो है