पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३१७

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३२० रामचन्द्रिका सटीक । मनोरमाछंद । निज शूद्रनकी तपसा शिशुपालक । बहुधा भुवदेवनके सब बालक । करिबेगि बिदा सिगरे सुरनायक । चढ़ि पुष्पक आशु चले रघुनायक १५ ॥ नग पर्वत ६ । ७।८। । १० श्राखंडल इंद्र ११ श्रीपति कहे लक्ष्मीपति १२ कलाप कहे समूह १३ धर्मराज न्यायदर्शी अथवा यमराज १४ । १५॥ दोधकछंद ॥राम चले सुनि शूद्रकि गीता पंकजयोनि गये जहँ सीता ॥ देखि लगी पग रामकि रानी । पूजिकै बूझति कोमलबानी १६ सीता ॥ कौनहुँ पूरबपुण्य हमारे । आजु फले जो इहां पगुधारे । ब्रह्मा ॥ देवनको सब कारज कीन्हो । रावण मारि बड़ो यश लीन्हो १७ में बिनती बह भांतिन कीनी । लोकनकी करुणा रसभीनी ॥ ऊतरु मोहि दियो सुनि सीता । जाकि न जानि परै जिय गीता १८ मां- गतहौं वर मोकहँ दीजै। चित्तमें और विचार न कीजै॥ प्राजुते चाल चलो तुम ऐसे । राम चलें वैकुंठहि जैसे १६ सीय जहीं कछु नैन नवाये । ब्रह्म तहीं निजलोक सिधाये ॥ राम तही शिर शूद्रको खंड्यो । ब्राह्मण को सुत जीवनमंड्यो २० सुंदरीछंद । एक समय रघुनाथ महामति । सीतहि देखि सगर्भ बढ़ी रति ॥ सुंदरि मांगु जो जीमहँ भावत । मोमन तो निरखे सुख पावत २१ सीता ॥ जो तुम होत प्रसन्न महा- मति । मेरे बढ़े तुमहीं सों सदा रति ॥ अंतरकी सब बात निरंतर । जानतही सबकी सबते पर २२ राम-दोहा । नि- गुणते सगुणो भयो सुनि सुंदरि तव हेत॥और कछू मांगी सुमुखि रुचै जो तुम्हरे चेत २३ ॥ १६ दैछंदको अन्वय एक है ऊतरु कहे जवाब दियो अर्थ वैकुंठ चलिवे