पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३१८

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रामचन्द्रिका सटीक । ३२१ को न कह्यो १७११८ । १६ नयन नवाये ते ब्रह्माको कह्यो अंगीकार करयो जानौ २० यह कह्यो इति शेपः २१ हमारे तुमहीं सों सदारति प्रीति व यह वर हमको दीजै इत्यर्थः २२ । २३ ॥ सीताजू-सुंदरीचंद ।। जो सबते हित मोकह कीजत । ईश दया करिके वरु दीजत ॥ हैं जितने ऋषि देव नदीतट । हौं तिनको पहिराय फिरों पट २४ राम-दोहा॥ प्रथम दो- हदै क्यों करौं निष्फल सुनि यह वात ।। पट पहिरावन ऋषिनको यो सुंदरि प्रात २५ सुंदरीछंद ॥ भोजन के तब श्रीरघुनंदन । पौढ़ि रहे वहु दुष्टनिकंदन ।बाजे बजे अधरात भई जब । दूतन प्राइ प्रणाम करी तव २६ पंचलाचंद ॥ दूत भूतभावना कही कहीन जाय बैन । कोटिधा विचारियो परै कछू विचारमैन । सूरके उदोतहोत बंधु पाइयो सुजान । रामचन्द्र देखियो प्रभातचंद्र के समान २७ संयुताछंद ।। बहुभांति बंदनता करी । हँसि बोलियोनदया धरी ।। हमते कळू दिज दोष है। जेहिते कियो प्रभु रोष है २८ दोहा॥ मनसा वाचा कर्मणा हम सेवक सुनु तात ॥ कौन दोष नहिं बोलियत ज्यों कहि आये बात २६ ॥ देवनदी गंगा २४ दोहद कहे गर्भ २५ १२६ यामें केशव कहत है कि दूतकी कही जो भूत कहे व्यतीत भावना कहे क्रिया है रजक वचनादि कथा सो कहिले को हम कोटि प्रकारसों विचारयो कळू विचार में नहीं परत तासों बनसों हमसों नहीं कही जाति इत्यर्थः २७।२८।२६ ॥ राम-संयुताछंद । कहिये कहा न कही परै । कहिये तौ ज्यों बहुतै उरै ॥ तव दूतबात सबै कही । वहुभांति देह दशा दही ३० भरत-दोहा॥ सदा शुद्ध प्रति जानकी निं- दत त्यों खलजाल ।। जैसु श्रुतिहि स्वभावही पाखंडी सव काल ३१ भव अपवादनि ते तज्यो ज्यों चाहत सीताहि ॥