पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३२

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२६ रामचन्द्रिा सटीक । करें१८ सुमति-दोहा॥कोयह निरखत श्रापनी पुलकित बाहु विशाल||सुरभि स्वयंवर जनुकरो मुकुलित शाखरसाल१६॥ जामें देशांतरनके राजालोग आय आय बैठत हैं ऐसी स्वयंवरसभा में चारों ओर मंच कहे मचानन की अवली पंक्ति बनति है १५ सो मंचावली सीयस्वयंवर में गजंदंत हाथीदांतनकी बनी है तामें ब्राह्मण उत्प्रेक्षा करत है कि ईश जे विधाता हैं ते मानो जुन्हाई सों मंडिकै युक्त करिकै वसुधा पृथ्वी में सुधाधर चन्द्रमाको मंडल कहे परिवेष सुधारि कहे सुधास्यो बनायो है ज्योत्स्नायुक्त चन्द्रपरिवेष सम कहे मंचावली की अतिश्वेतता जनायो ईश बनायो सम कहे अतिरुचिर रचना जनायो औ देवसरिस राजकुमार हैं देवसभा सरिस मंचावली जानो १६ पंचालिका नृत्य की जातिविशेप है अपारकर कहे हस्तक भेदसों संकलित युक्त १७।१८ सुरभि कहे वसंतरूपी जो स्वयंवरहै त्यहि मानो रसाल आंबकी शाखको मुकुलित औरयुक्त कस्यो है जैसे वसंत में आंबकी शाख बौरति है तैसे धनुष उठाइवे से मोदकानि चाटु रोमांचिन भयो अथवा सुरभिरूपी जो हैं स्वयं कहे अपना त्यहि वर कहे सुन्दर रसालशाख को मुकुतिन कियो है १६ ॥ क्मिति-सोरठा ॥ ज्यहि यशपरिमलमत्त चंचरीक चारण फिरत ॥ दिशि विदिशन अनुरक्त सुतौ मल्लिकापीड़ नृप २० सुमति-दोहा ॥ जाके सुखमुखबासुते बासित होत दि- गंत ॥ सो पुनि कहु यह कौन नृप शोभित शोभ अनंत २१ विमति-सोरठा।।राजराज दिगवान भाललाल लोभीसदा॥ अतिप्रसिद्ध जग नाम काशमीर को तिलक यह २२ ॥ पांच छंदन में विमतिके पांच प्रश्नोंको श्लेषसोंउत्तर दियो है मल्लिकनाम जो पर्वत है ताकी आपीड़ कहे शिखाभूपण है अर्थ मल्लिक पर्वत को राजा है । यथाच पद्ययुगणे “ मल्लिकाख्यो महाशैलो मोक्षदः पश्वर नृणाम् । यत्राङ्गेषु तृणां तोयं श्यामं वा निर्मलं भवेत् ॥ पालकस्यापहारीदं नया दृष्टं तु | तीर्थकम् ४" औ मल्लिका जो चबेली है ताको आपीड़ शिखाभूषण वेणी | मालादि "शिखा स्वापीडशेखरौ इत्यमरः" कैसोहै राजा औ गाजती माता ज्येहि के यशरूपी जो परिमल सुगंध है तासों मत्त चंचरीक भ्रमर सदृश जे CARROSOTASSEPARATVSURSES BARRIS