पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचन्द्रिका सटीक । बाजतही उठि लक्ष्मण धाये। श्वानहिं का बूझन आये ३ कूकर । काहूके क्रोध विरोध न देखो । रामको राज तपो- मय लेखो॥ तामहँ में दुख दीरघ पायों । रामहिं हौं सो निवेदन प्रायों ४ लक्ष्मण ॥ धर्मसभामहँ रामहि जानो। श्वान चलो निजपीर बखानो॥श्वान ॥ हौं अब राजसभा नहिं पाऊं। आऊं तो केशव शोभ न पाऊं ५ दोहा । देव अंदेव नदेव घर पावनथल सुखदाइ॥बिन बोले अानंदमति कुत्सित जीवन जाइ ६॥ १ धर्मसभा न्यायसमा २। ३ निवेदन कहना ४॥ ५ ॥ ६ ॥ दोधकछंद ॥राजसभामहँ श्वान बुलायो। रामहिं देखत ही शिर नायो ॥ राम कह्यो जो कळू दुख तेरे । श्वान नि- शंक कहो पुर मेरे ७ श्वान-तारकछंद ।। तुमही सर्वज्ञ सदा सुखदाई । अरु हौ सबको समरूप सदाई ॥ जग सोहत है जगतीपति जागे। अपने अपने सब मारग लागे ८ नरदेव न पायपरै परजाको। निशि वासर होइ न रक्षक ताको। गुणदोषनको जब होइ न दर्शी। तबहीं नृप होइ निरयपद पर्शी दोहा ।। निजस्वारथही सिद्धिद्धिज मोको कखो प्र- हार ॥ बिन अपराध अगाधमति ताको कहा विचार १० तारकछंद ॥ तब ताकहँ लेन तबै जन धाये । तबहीं नगरी महँते गहि ल्याये ॥ राम ॥ यह कूकर क्यों बिन दोषहि माखो । अपने जिय त्रास कळू न विचाखो ११ ब्राह्मण- दोहा ॥ यह सोवतहो पंथमें हों भोजनको जात ।। मैं अकु- लाइ अगाध मति याको कीन्हों घात १२ राम-स्वागता छंद ॥ ब्रह्म ब्रह्म ऋषिराज बखानो । धर्म कर्म बहुधा तुम