पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३२६

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रामचन्द्रिका सटीक । ३२६ धाम ३१ वसंततिलकाछंद ॥ राजाहुतो प्रबल दुष्ट अनेक- हारी । वाराणसी विमलक्षेत्रनिवासकारी ॥ सो सत्यकेतु | यह नाम प्रसिद्ध शूरो । विद्याविनोदरत धर्मविधानपूरो३२ ॥ ब्रह्मस्व ब्राह्मण को द्रव्य और देवता को द्रव्य और स्त्रीको द्रव्य और बालक को द्रव्य और अपनी दीन्ही जो द्रव्य है इनको मोहवश हैकै जो हरतहै सो प्राणी ध्रुव कहे निश्चय करि नरके कहे नरकमें पर्चत् कहे पाकत है अर्थ जरतहै दुख पावत है इति कहिवेको हेतु यह कि देवद्रव्यहारी मठपति है सो नरकको प्राप्त होत २७ जो प्राणी काहू देवको मठपति होइ सो धर्मरहित हैजात है इत्यर्थः २८ अन्नाति कहे भोग करत है घोर भयानक जे एकविंशति नरक हैं तिनमें पाकत है २६ मठिन को अन्न अभोज्य है खाइवे योग्य नहीं है जो खाइये तो चान्द्रायण व्रतको करिये और मठपति ब्राह्मण को स्पृष्ट्वा कहे हुइक सवासा कहे वस्त्रसहित जलं कहे जलमें आवि- शेत् कहे प्रवेश करिये वस्त्र सहित स्नान करि डारिये इत्यर्थः ३० जो | पाछे कबो है कि " गुणदोषन को जब होइ न दी । तवहीं नृप होइ निरयपद पर्शी " सो बात पुष्ट करिवे के लिये सत्यकेतु की कथा कहत हैं जो वंशकार कहे डोम के घर विकल कष्टयुक्त बसत है ता भूपकी कथा कहत हौं ३१ ॥ ३२ ॥ धर्माधिकार पर एक द्विजाति कीन्हों। संकल्पद्रव्य वहुधा त्यहि चोरिलीन्हों।बंदी विनोद गणिकादि विलास कर्ता। पावै दशांश दिज दान अशेष हर्त्ता ३३ राजा विदेश बहु साजि चमू गयेहो । जुझेउ तहाँ समर योधनसों भयेहो। आये कराल किल दूत कलेशकारी । लीन्हेगये नृपतिको जहँ दंडधारी ३४ धर्मराज-भुजंगप्रयातछंद ॥ कहा भोग- वैगो महाराज दूमें। कि पापै कि पुण्यै करेउ भूरि भूमें ॥ राजा ।। सुनो देव मोको कछु सुद्धि नाहीं। कही आपही पाप जो मोहिं माही ३५ धर्मराज ॥ कियो तें द्विजोती जो धर्माधिकारी । सो तो नित्य संकल्पवित्तापहारी ॥ दियोदुष्ट