पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३३१

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रामचन्द्रिका सटीक। चामरछंद ।। मैथिलीसमेत तो अनेक दान में दियो । राज- सूय आदिदै अनेकजन्म में कियो ॥ सीयत्याग पापते हिये सो हौं महाडरौं। और एक अश्वमेध जानकी विना करौं ३॥ संगरधाम कहे समरभूमि में १।२ सो नाके त्याग पापके भोचनार्थ विना जानकी एक अश्वमेध करतहौं इत्यर्थः ३॥ कश्यप-दोहा ॥ धर्म कर्म कछु कीजई सफलतरुनके साथ ॥ ताबिन जो कछु कीजई निष्फल सोई नाथ ४ तोटक छंद ॥ करिये युत भूषणरूपरयी । मिथिलेशसुता इक स्वर्ण- मयी ॥ ऋषिराज सबै ऋषि बोलि लिये । शुचिसों सब यज्ञ विधान किये ५ हयशालनते हय छोरि लियो। शशिवर्णसो. केशव शोभरयो॥ श्रुतिश्यामल एक विराजत है । अ- लिस्यो सरसीरुह लाजत है ६ रूपमालाछंद ॥ पूजि रोचन स्वच्छ अक्षत पट्टवांधिय भाल । भूषि भूषण शत्रुदूपण छांडियो तेहि काल ॥ संगलै चतुरंगसेनहि शत्रुहंता साथ । भांतिभांतिन मानदै पठये सो श्रीरघुनाथ ७ जातहे जित वाजि केशव जातहैं तित लोग। बोलि विप्रन दानदीजत यत्र तत्र सभोग ।। वेणु वीण मृदंग बाजत दुंदुभी बहुभेव । भांति भांतिन होत मंगल देवसे नरदेव ८ कमलछंद ॥ राघव की चतुरंगचमू चंपको गनै केशव राजसमाजनि। शूरतुरंगन के उरझै पगतुंग पताकनकी पटसाजनि ॥ दूटिपरे तिनते मुक्ता धरणी उपमा बरणी कविराजनि । बिंदु किधौं मुख फेननके किधों राजश्री सवै मंगललाजनि॥ ४ शुचिसो पवित्रतासों ५ इहां श्वेत कमल जानों ६शत्रुदूषण रामचन्द्र सभोग कहे अनेक भोग्य वस्तु सहित ८ समाज समूह सवै कहे वर्षति हैं राजन के प्रयाणमों पुरस्त्री लाजं कहेलावा मंगलार्य वर्षती हैं यह प्रसिद्ध है।