पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३५

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रामचन्द्रिका सटीक । अनंगी सव अरणि सुनावै ऐसे कौने गुण पाये हैं। सीताके स्वयंवरको रूप अवलोकिबे को भूपनको रूपधरि विश्वरूप आये हैं ३० सोरठा ॥ कह्यो विमति यह टेरि सकलसभाहि सुनाइकै ॥ चहूं ओर कर फेरि सबही को समुझाइकै ६१ गीतिकाछंद ॥ कोइ अाजु राजसमाजमें बल शम्भु को धनु कर्षि है । पुनि श्रवण के परिमाण तानि सो चित्त में अति हर्षि है | वह राज होइ कि रंक केशवदास सो सुख पाइहै। नृपकन्यका यह तासुके उर पुष्पमालहि नाइ है ३२ ॥ सिंधुराज सिंधुदेश लाहोरको राजा औ समुद्र चंदनके चित्रकी तरंग है अंगन में जाके अर्थ चित्र विचित्र चंदन अंगन में लाये है औ चंदन वृक्षनसों चित्र विचित्र तरंग जाकी अनेक चंदन वृक्ष जाकी तरंगनमें वहत हैं वाहिनी चमू औ नदी मुक्तनकी माला पहिरे श्री मुक्तनकी माला पंगति समूहेति सोहै उरय वदनमें जाके "सिंधुर्वमथुदेशाब्धिनदेनासरति स्त्रियामितिमेदिनी"२८बल अंगवल, विक्रम बुद्धिबल २६ पन्नग सर्प शेपादि पतंग पक्षी गरुड़ादि असुर दैत्य राक्षस वाणासुर रावणादि सिद्धदेवजाति विशेप अथवा तपस्वी अजर कहे जराबुढ़ाईसोरहित देवता अमर हनूमानादि अन ब्रह्मादि अंगी अंगधारी अनंगी कामादि विश्वरूप संसारभरेके रूप पाणी ३०।३१ कर्षिहै उठाइहै३२॥ दोहा॥नेक शरासन आसनै तजैन केशवदास ॥ उद्यम के थाक्यो सबै राजसमाज प्रकास ३३विमति सुंदरीछंद॥शक्ति करी नहिं भक्तिकरी अब। सोन नयो पल शीश नये सब। देख्यों में राजकुमारनके वर । चाप चढ़यो नहिं आप चढ़े खर ३४ विजय ॥ दिक्पालनकी भुवपालनकी लोकपालनहू किन मातु गईच्चै । भांडभये उठि आसनते कहि केशव शम्भु शरासनको बै॥ काहू चढ़ायो न काहू नवायो सुकाहू उठायो न आंगुरहू दै। स्वारथ भो न भयो परमारथ आये है वीर चले वनिता लै ३५॥ इति श्रीस्वयंवरसभावर्णनंनाम तृतीयः प्रकाशः३॥