पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/४

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श्रीगणेशाय नमः। रामचन्द्रिका सटीक॥ बालक मृणालनि ज्यों तोरिडारै सब काल कठिन क- राल त्यों अकाल दीह दुखको । विपति हरत हठि पद्मिनी के पातसम पंक ज्यों पताल पेलि पठवै कलुखको ॥ दूरिके कलंक अंक भवशीशशशिसम राखत हैं केशोदास दासके |बपुखको । सांकरेकी सांकर न सनमुख होतही तो दश- मुख मुख जोवै गजमुखमुखको १ ॥ बालक पांच वर्षको हाथीसों जैसे मृणाल पौनारोंको सब कालमें तोरि डारत है तैसे गणेश कठिन औ कराल भयानक औ अकाल कहे असमय को जो दीह कहे बड़ो पुत्रमरणादि दासनको दुख है ताको तोरत हैं औ जैसे बालक पद्मिनी कमलिनी के पातको हरत तोरत है तैसे ये विपत्ति दरिद्रादिको हरत हैं औ बालक जैसे पगसों दात्रि पंक कहे कीचको पेलिक पातालको पठावत है तैसे ये कलुप जे पाप हैं तिनको पठावत हैं इहां गजराज को त्यागकरि बालकसम यासों कह्यो पद्मिनी पत्रादि तोरनमें बालक को उत्साह रहत है तैसे गणेशजूको विपत्त्यादि विदारण में बड़ो उत्साह रहत है कौतुकही विदारत हैं औ गणेशजू दासनके कलंकको अंक कहे चिह्नको दूरि करिकै जैसे भव महादेव के शीशको शशि है कलंक रहित ताही विधि दासनके वपुष शरीरको राखत हैं औ जिनके सन्मुख होतही सांकर राजभयादि ताकी सांकर बंधन कही जंजीर सो नहीं रहति ऐसे जे गजमुख गणेश हैं तिनके मुखको दशमुख जे ब्रह्मा विष्णु