पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचन्द्रिका सटीक। खंडित मान भयो सबको नृपमंडल हारि रह्यो जगतीको । व्याकुल वाहु निराकुल वुद्धि थक्यो बल विक्रम लंकपती को॥ कोटि उपाय किये कहि केशव केहूं न छोड़त भूमि रतीको । भरि विभूति प्रभाव सुभावहि ज्यों न चले चित योग यतीको २७ पद्धटिका॥धनु अतिपुरान लंकेश जानि । यह बात बाणसों कही प्रानि॥ हौं पलकमाहँ लैहौं चढ़ाइ। कछु तुमहूं तो देखो उठाइ २८॥ सु कहे सो रारि वाग्विवाद अथवा सुरारि बाणासुर २२२६ निराकुल शिथिल वल देहवल विक्रम उपाय विभूति ऐश्वर्य सुवर्ण रत्न गजादियोग यती योगी २७ धनुष मोसों उठनलायक नहीं है यह जानिके रावण अपना भरम राखि धनुप छोड़ि आइ बाणसों यह बात कह्यो कि धनुप अतिपुरान है २८॥ बाण-दोहा । मेरे गुरु को धनुष यह सीता मेरी माइ॥ दुहूँ भांति असमंजसै बाण चले सुखपाइ २६ रावण-तोटक छंद ॥ अव सीय लिये विन हौं न टरौं । कहुँ जाहुँ न तौलगि नेम धरौं ॥ जवलौं न सुनौं अपने जनको । अतिभारत शब्द हते तनको ३० ब्राह्मण-मोदकछंद ॥ काहू कहूं शर प्रासर मारिय । भारत शब्द प्रकाश पुकारिय ॥ रावण के वह कान पखो जब । छोड़ि स्वयंवर जात भयो तब ३१ दोहा । जब जान्यो सबको भयो सबही बिधि व्रतभंग ॥ धनुष धखो लै भवनमें राजाजनक अनंग ३२ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायांवाणरावणयो- विवादवर्णनंनाम चतुर्थःप्रकाशः॥४॥ २६ हते कहे वाणादिसों वधे अर्थ मेरे दास यहां उहां यज्ञादि विघ्नकरत फिरत हैं तिनको जो कोऊ सताइ है तौ तिनकी रक्षाको जैहौं ३० जब