पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/४६

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रामचन्द्रिका सटीक । ४१. जलेति अर्थ सिंदूरमिश्रित जललो करयो अथवा परिपूर्ण सिंदूरसों पूर कहे पूरित अर्थ सिंदूर ही सों भरयो अथवा सिंदूरसों रँग्यो के मंगल विवाहादि को घटपूजन कलश हैं माणिक रत्नकी मयूख किरण तिनको बीन्यो पट वस्त्र औ फिल कहे निश्चय करि यह कपालिका काली पै शोणित रुधिर कलित कालको कपाल शीश है अथवा ऋपालिकाको व काल को शोणित कलित कपाल हैं काली को रुधिर मांसाफ तासों कालको सर्वभक्षक तासों "कालो जगद्भक्षक इति प्रमाणात् ॥ ११ ॥ तोटकछंद ॥ पसरे कर कुमुदिनिकाज मनो । किधौं प. मिनिको सुखदेन घनो ॥ जनु ऋक्ष सबै यहि त्रास भगे। जिय जानि चकोर फँदान ठगे १२ रामचन्द्र-चंचरीकछंद ॥ व्योम में मुनि देखिये अतिलाल श्रीसुखसाजहीं । सिंधु में बड़- वाग्निकी जनु ज्वालमाल विराजहीं ॥ पनरागनिको किधौं दिवि धूरि पूरित शोभई । शूरवाजिनकी खुरी अतितीक्षता तिनकी हई १३ विश्वामित्र-सोरठा ॥ चढ़यो गगन तरु धाय दिनकर वानर अरुणमुख ॥ कीन्हो झुकि झहराय सकलतारका कुसुम बिन १४ ॥ कुनुदिनि कोईके काज कहे गहिबेको कुमुदिनी भय सो संकोचको प्राप्त होती है तासों ऋक्ष नक्षत्र यदि त्रास कहे फंदा भ्रमके त्रास १२ यामें आ. काश में सूर्यकी लाली छाइरही है ताको वर्णन है मुनि विश्वामित्रको संबो- धन है १३ सूर्योदय सों नक्षत्र अस्तभये तामें विश्वामित्र ने तर्क करयो दिनकर सूर्यरूपी जो अरुणमुख वानर सो गगन आकाशरूपी तरु वृक्षमें धायकै चढ़यो है सो झकि कहे रिसायकै झहराय कहे हलायकै सकल तारका नक्षत्ररूपी जे कुसुम फूले हैं तिन दिन कीन्हीं सकल नक्षत्र अस्त भयो तासों झुकि पद कह्यो १४ ॥ लक्ष्मण-दोहा ।। जहीं वारुणीकी करी रंचक रुचि दिज राज॥ तहीं कियो भगवन्त बिन संपतिशोभासाज-१५ तोमरछंद । चहुँभाग बाग तड़ाग । अब देखिये बड़भाग ।।