पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/५

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WARRA २ रामचन्द्रिका सटीक। मद्देश तिनके गुन्द्ध जोवै कहे निरखते हैं स्तुति करत हैं अथवा दशमुख जे दशौ दिशा है तिनके मुख हैं अर्थ यह दशौदिशन के प्राणी स्तुति करत हैं ॥ पश्चवर्षो गजो बाल इत्यभिधानचिन्तामणिः ॥ तो इहां स्तुतिसों अभि- कांक्षित वस्तुको मांगियो सूचित भयो तासों घाशीर्वादात्मक मंगल है दूसरो अर्थ जो ग्रंथ कविलोग करतहैं ताकी कथा प्रथम संक्षेप सों कहत हैं सो युक्लिसों याही मंगलाचरण में कह्यो है बालक या पदते श्रीररामचन्द्र को जन्म सूचित भयो औ सबको कालरूप ने सुबाहु ताड़कादि हैं तिन्हें मृणा- लन पौनारिन के समान सहजही तोरि डारत भये मारत भये औ कठिन औ कराल कहे भयानक ऐसा जो धनुपहै औ अकाल कहे कुसमय को जो दीड वड़ो दुख है ब्याइत उत्सब में परशुराम कृत दुख गर्वगति समेत तिनहुनको त्यों कहे ताही प्रकार तो मृणालन बहुवचन है तासो ताड़कादि वध धनुभंग परशुरामगतिभंग सर्वत्र समता कियो इति वालकांडकथा ॥ औ राज्यत्यागरूप जो विपत्ति है ताको हठिकै हरत कहे ग्रहण करत भये भरतादि को कह्यो न मान्यो श्राप पश्मिनी कमलिनी के पात कहे पुष्प पत्रसम सुकुमार हैं इति अयोध्याकांडकथा ॥ औ पंक ज्यों कहे पंकफे सदृश नीच ऐसा जो विराध है ताको पेलिकै पातालको पगवत भये वाल्मीकीय रामायण में लिख्यो है कि काहू अल शस्त्र सों न मरै तब रामचन्द्र जीवतही गाडिलियो ताही प्रकार कलुष पापरूप जे खरदूषणादि है तिनहुनको मारयो इति आरण्यकांडकथा ॥ ौ कलंकको है. अंक चिह्न जाके ऐसा जोधुपन भोगी बालि है ताको दूरि करत मारत भये औ दास जो सुग्रीव है ताको भव महादेव के शीशके शशिके सम राखत भये जैसे भवशीशशशिको राहुको भय नहीं रहत तैसे शत्रुभयरहित सुग्रीव को कियो अथवा महादेवके माथेमें द्वितीयाको चन्द्रमा है यासों या जनायो कि भव संसार को राज्यपाइ सुग्रीव की और बढ़ती हेहै इति किष्किन्धा- कांड तथा याही पदमें सुन्दरौकांड है ॥ केशव जे रामचन्द्र हैं तिनके दास जे सुग्रीव हैं तिनके दास जे हनुमान् हैं ताके वपुष शरीरको भव- शीशशशि सम राखत भये कि लंका में प्रकाशित करते भये कलंकरूप जे सिंहिका अक्षयकुमारादि हैं तिनको दूरि करिकै कहे मारिकै इति सुन्दर- कांडकथा ॥ औ रामचन्द्र के सन्मुख होतही विभीषण के सांकर कष्टकी जो सांकर जंजीर रही शीत कहे न रहत भई रामचन्द्र के दर्शनही सों