पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचन्द्रिका सटीक । ३ | विभीषणको दुख दूरिभयो तब दशमुख जो ब्रह्मा विष्णु महेश हैं ते विभी- षणको मुख जोवत भये कि धन्य है विभीषण जाको रामचन्द्र अङ्गीकार कस्यो नौ गजमुख जो गणेश हैं तिन मुख कहे आदिदै और देवता हैं ते को कहे कहा हैं अर्थ यह गणेशादि देवता तो जोवनही भये औ सांकर जे | यमादिक . तिनको सांकर कहे कष्टदेवैया ऐसा जो रावण है सो रामचन्द्र के सन्मुखं होतही न रहतभयो गजमुख जे गणेश हैं तिनके मुख कहे श्रेष्ठ ऐसे जो रामचन्द्र हैं तिनके मुखको जोवत भयो अर्थ यह उनके लोकको माप्त भयो अथवा मुख जोवै कहे मुख में लीन होत भयो तुलसीकृत रामायण में लिख्यो है कि ॥ तासु तेज प्रभु बदन समाना । सुर नर सवन अचंभौ माना ॥ इति युद्धकांडकथा॥ो सांकर जो रावण है ताके सांकर | जो रामचन्द्र हैं तिन्, अयोध्याके सन्मुख होतही दशमुख जे ब्रह्मा विष्णु महेश हैं ते मुख कहे मुख्य औ गजमुख जे गणेश हैं ते रामचन्द्रको मुख- जोवे कहे स्तुति करत हैं अथवा दशमुख कहे दशौ दिशाके मुख औ गजमुख मुख कहे हाथिन में मुख्य ते मुख जोवै कहे रामचन्द्रको मुख निहारत हैं इति उत्तरकांडकथा ॥ कोऊ कहै कि एक पदमें कैयो फेरि अर्थ कियो सो संक्षेप कथा है तासों दूषण नहीं है याही विधि रामायणादिक तिलककारन अर्थ कियो है याहूपर कोऊ हठ करै ता लिये द्वितीय प्रकार सों अर्थ वालक जो है शिशु सो जैसे बालखेलमें मृणालनको विनहीं श्रम तोरिडार कहे तोरि डारत है इहां बालरूपदमें जाति में एकवचन है त्यों कहे ताही विधि कठिन अतिकठोर औ भयानक ऐसा जो शम्भुधनुप है ताको वाल अवस्था में बालखेलसम रामचन्द्र तोखो त्यहि मुख कहे आदिदै ताड़कावधादि सीय- विवाहादि जे बालकांडकी संपूर्ण कथा तिनको इहां मुखपद क्रमकी आदि मो नहीं है श्रेष्ठतामो है औ अकाल कहे कुसमयको जो दीह दुख है अर्थ राम राज्याभिषेक में केकयीको वर मांगियो रामवनगमन दशरथमरण भरतको व्रत करि नन्दीमान में वसन या प्रकारको जो अकाल दुख है त्यहिमुख जे चित्रकूट गमनादि अयोध्याकांडकथा हैं तिनको औ विराध खरदूषणादि राक्षसनको मारिकै ऋपिलोगनकी विपत्तिको सहनही पभिनीके पातसम हरत कहे दूरिकरत पंकरत पंक जे पाप हैं तिनको जैसे पेलिकै पातालको पठधै कहे पटै देत हैं अर्थ आपने दासनके जैसे पातक नाश करत हैं। ताही विधि कलुप कहे पापरूप बंधुपत्रीभोगी जो वालि है ताको पठायो