पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/७०

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रामचन्द्रिका सटीक। बासिन को रामादशरथ यथोचित दान दियो ऋपिराज नपरची ब्रह्मा ऋषिराज ब्राह्मण राजपद को अनुषग ऋषिहूमों है ६७ ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद नि- मिताया रामभक्तिप्रकाशिकाया सीतारामविधाहवणा नाम पष्ठ प्रकाश.६॥ दोहा ॥ या प्रकाश सप्तम कथा परशुराम संवाद ॥ रघुवर सो अरु रोष त्यहि भजनमान विषाद १ विश्वामित्र विदामये जनक फिरे पहुँचाय ॥ मिले मागिली फौज को परशुराम अकुलाह २ चचरीकबद ॥ मत्तदंति अमत्त होइगये देखि देखिन गजहीं। ठौर ठौर सुदेश केशव दुदुभी नहिं बज्जहीं। डारि डारि हथ्यार शूरज जीव लैलै भजहीं। काटिकै तन त्राण इक तिन नारि वेषन सजही ३ दोहा॥ वामदेव ऋषि सों को परशुराम रणधीर ॥ महादेवको धनुष यह को तोरेउ बलवीर ४ वामदेव ॥ महादेवको धनुष यह परशुराम ऋषि- राज॥तोरेउ राजा कहतहीं समझेउ रावणराज५परशुराम।। अति कोमल नृपसुतनकी ग्रीवादली अपार ॥ अब कठोर दशकंठ के काटहुँ कठ कुठार ६ परशुराम-विजय छद ॥ |बांधिकै बॉध्योजो बालि बली पलनापरलै सुतको हितठाढे। हैहयराज लियो गहि केशव पायोहो क्षुद्र जोछिद्रनिडाद। बाहिरकादिदियो बलिदासिन जाइपरेउ जो पतालको बाढ़े। तोको कुठार बड़ाई कहा कहि ता दशकंठ के कंठन कादे७॥ या प्रकाश में परशुराम सों औ रघुवर सों सवाद है नौ ताही रघुवर के रोष फरिकै परशुराम के मान को औ आपने सैन्य के विषाद के दुख को भजन है १ । २ यमि परशुराम के तेज को वर्णन है कि जिन परशुराम को देखि भयसों दशरथ, चमूमें या दशा भई, शूरज कहे शूरन के पुत्र अर्थ