पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचन्द्रिका सटीक । पहिचानिये ३४ जगमोहनदडक || किधों यह राजपुत्री बरही बयो है किधौं उपधि बस्यो है यहि शोभा अभिरत हो। किधों रति रतिनाथ यश साथ केशोदास जात तपो- वन शिववैर सुमिरत हो ॥ किधों मुनि शापहत किधों ब्रह्मदोषरत किधौं सिद्वियुत सिद्ध परमविरत हो । किधों कोऊ ठग हौ ठगोरी लीन्हें किधों तुम हरिहर श्रीही शिवा चाहत फिरत हो ३५॥ सब मगके प्राणी तिहुँनकी सुन्दरता देखिकै मोहत हैं सो मनमें कहत हैं कि हे ईश! हे भगवन् ! ये को हैं या प्रकार संभ्रम में सबके चिरा अरुझत हैं तब रामही सों या प्रकार सब धूम कहे पूछत हैं सो आगे कहत हैं ३३ वह पुत्रवधू साजन कहे स्वामी ३४ कि यह जो स्त्री है सो | राजपुत्री है ताको घरहीं कहे जबरईसों बरयो है कई विवाह्यो है अथवा यह जो राजपुत्री है तेही माता पिता की आज्ञा मेटिकै अपनी इच्छासों तुमको जबरई बरथो है कि तुम याको उपधि कहे छलसों परयो है "कपटोऽत्री व्याजदम्भोपधयः छमकतवे इत्यमरः" ऐसी शोभासों अभिरत कहे युक्त हो | काहेत कि जो तुमको तपस्वी जानि राजा अपनी इच्छासों विवाह देतो तो तुम्हारे आश्रमपर्यंत आपने लोग सग करिदेतो सो नहीं है तासों यह जानि परत है कि ताही रानाके भयसो वनको भागे जात हौ इति भावार्थ यश ससार जीत्यो है ताको यशरूप लक्ष्मण हैं शिवजी नयन की भागिसों जारयो ता वैरको सुमिरत शिवके तपोवन को शिवसे लरिषको जातही अथवा शिवके वैरको सुमिरत हौ तासौं तपोवन में ता करिषे को जातही जासों बडो तपकरि तपोबलसों शिवको जीत कि सिद्धि तप सिद्धि अथवा मुक्ति तासों युक्त तुम परमविरत सिद्धहौ परमविरत कहि या जनायो कि ससारसों अतिविरत है अति बड़ो तप करयो है यासों देहधरि सिद्धि तुम्हारे संग संग फिरति है "सिद्धिस्तु मोक्षे निष्पत्तियोगयोरित्यभिधान- चिन्तामणि" कि हरि औ हर श्री श्रीलक्ष्मी हौ शिवा जी पार्वती हैं तिन्ह चाइत कहे ढूंढत फिरत हौ,३५॥ मत्तमातगलीलाकरनदडक | मेघ मंदाकिनी बारु सौदा-