पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/९५

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रामचन्द्रिका सटीक । सिनी समेत शारिका सबै पर्दै।जहीं जहीं विरामलेत रामजू तहीं तही अनेकभांति के अनेकभोग भागों ब. ३७ ॥ पुढरीक कमल भागों कहे भाग्यसों अथवा द्विगुण चतुर्गुणादि भाग कई हीसा सो ३७॥ सुंदरीछंद ॥ घामको रामसमीप महाबल । सीतहि ला- गत है अति शीतल ॥ ज्यों घनसयुत दामिनि के तन । होत हैं पूषनके कर भूषन ३८ मारगकी रजतापित हैं अति। केशव सीतहि शीतल लागति ॥ प्योपदपंकज ऊपर पांयनि । दैजी चलै तेहिते सुखदायनि ३६.दोहा ॥ प्रतिपुर श्री प्रतिग्रामकी प्रतिनगरनकी नारि ॥ सीताजूको देखिकै 'व- न है सुखकारि ४० जगमोहनदंडक ॥ वासों मृगअंक कहैं तोसों मृगनयनी सब वह सुधाघरातुडू सुधाधर मानिये। वह द्विजराज तेरे बिजराजिराजै वह कलानिधि तुहू कलाकलित बखानिये॥ रत्नाकरके हैं दोऊ केशव प्रकाशकर अंबर विलास कुवलयहित मानिये । वाके अतिशीत कर तुहूं सीता शीतकर चन्द्रमासी चन्द्रमुखी सब जग जानिये ४१॥ घामको जो महाबल कहे अति तेज है सो रामके समीप में सीता को अति शीतल लागत है जैसे धन जे मेघ हैं तिनते युक्त जो दामिनी विजुली है साके तन में पूषण जे सूर्य हैं तिनके कर किरण भूपण होत है सूर्यकी किरणें मेघनमें परती हैं तब इन्द्रधनुष होत है सोई दामिनी को भूषण सम है ३८ हेतु यह कि पृथ्वी की सीता पुत्री हैं रामचन्द्र जामातु हैं तासों पृथ्वी की रज तिनको सुख दियोई चहै तामें युक्ति यह कि पफजपर पांड धारिक चले तो शीतलई लागत है ३६ । ४० या प्रकार कोज स्त्री सीता तो कहत है कि वह जो चन्द्रमा है जाको मृगक सन्न कहत है सगा जो शशा है सो है अको गोद में, मध्य इति जाके अथवा मृगको अक कहे