पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रथम सोपान, बालकाण्डं । उन्होंने पार्वतीजी से वर्णन किया। इसी ले हृदय में खोज कर प्रसन्ता-पूर्वक शिवजी ने सुन्दर 'रामचरितमानस' नाम रक्खा ॥६॥ मयरितमानस नाम रखने का समर्थन हेतुसूचक बात कह कर करना कि शिवजी ने अपने मानस में बनाकर रख लिया था इससे रामचरितमानस नाम रखा 'कायलिङ्ग भलंकार' है। कहउँ कथा साइ सुखद सुहाई । सादर सुनहु सजन मन लाई ॥७॥ वही सुहावनी सुख देनेवाली कथा मैं कहता हूँ, हे सज्जनो मन लगा कर आदर के साथ सुनिए ॥७॥ दो-जस मानस जेहि बिधि भय उ, जग प्रचार जेहि हेतु । अब सोइ कहउँ प्रसङ्ग सत्र, सुमिरि उमा वृष केतु ॥ ३५ ॥ यह मानस जैसा है, जिस तरह हुआ और जिस कारण इसका संसार में प्रचार हुआ है, अब वह प्रसङ्ग शिव-पार्वतीजी को स्मरण करके कहता हूँ ॥३५॥ तीन बातों की विवेचना करने का विचार करिजो प्रगट करते हैं। जैसा मानस्ल है अर्थात् मानेत का स्वाय ( २ ) जिस प्रकार से उत्पन्न हुआ है। (३) जिस कारण इसका जगत् में प्रचार हुआ है। ये तीनों बातें धागे मानस प्रकरण में मिलगी। चौ-सम्भु प्रसाद सुमतिहिय हुलसी । रानचरितमानस कवि तुलसो काइ मनोहर मति अनुहारी । सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी ॥१॥ शिवजी की कृपा से हृदय में सुन्दर बुद्धि विकसित (प्रसन्न) हुई, जिससे तुम्नसी गमच- रितमानस का कवि हुआ। अपनो मति के अनुसार मनोहर रचना करता है, हे सज्जनो! सावधानी से सुन कर सुधार लीजिए ॥२॥ पहले कह आये हैं कि मैं कवि नहीं है और यहाँ कहते हैं कि शिव जी की कृपा से हृदय में सुशिद्धि हुलसित हुई, तब रामचरितमानस का तुलसी कवि हुआ है। शङ्कर के प्रलाद गुण से तुलसीदास का कवित्त रचना में गुणवान होना 'प्रथम उल्लाल अलंकार' है। समन वृन्द से सुधारने की प्रार्थना करने में अपनी लघुता व्यक्षित करना अगूढ़ व्यङ्ग है। सुमति भूमि थल हृदय अगाधू । बेद पुगेन उदधि धन साधू । घरपहिं राम सुजस घर बारी। मधुर मनोहर मङ्गल कारी ॥२॥ सधुद्धि धरती रूपिणी है, हाय : पानी ठहरने का) गहरा स्थान है, वेद-पुराण समुद्र रूप हैं और सज्जन मेघ है । वे रामचन्द्र जी का सुन्दर यश रूपो अच्छा मीठा, मनोहर और कल्याणकारी जल बरसते हैं ॥२॥ यहाँ से कविजी उपमान-मानसरोवर के समस्त श्रम का आरोप उपमेय-रामचरित. मानस में करके माग रूपक वर्णन करते हैं। मानस प्रकरण में साद्यन्त. इसी प्रकार की प्रधानता है। पानी के गुण चार हैं, स्वच्छ, मधुर, शीतल और लोक का महल [कृषि वृद्धि] करना, रामचरित रूपी अल में इन गुणों का उल्लेख नीचे की चौपाइयों में करते हैं। ७