पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१००६

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जास्ववान कहा- षष्ठ सोपान, लङ्काकाण्ड । शमचन्द्रजी का धन्धन में पड़ना प्रसिद्ध वस्तु है, उसको काकु द्वारा निषेध करना 'प्रतिषेध अलंकार है। जो व्यापक विश्व निवास हैं, जिनका नाम जप कर मुनिजन भव. पास काटते हैं वे कभी बँधुवा हा सकते हैं ? इसमें असम्भव की ध्वनि है। चौ०-चरित राम के सगुन भवानी । तरकि न जाहिँ बुद्धि बल बानी ॥ अस बिचारि जे तज्ञ बिरागी। रामहि मजहिँ तर्क सब त्यागी ॥१॥ शङ्करजी कहते हैं-हे भवानी ! सगुण-राम के चरित को विवेचनो बुद्धि, बल और वाणी से नहीं हो सकती। ऐसा लगझ कर जो शानी और वैशवान हैं वे सारी तर्कनाओं को छोड़ कर रामचन्द्रजी का भजन करते हैं ॥१॥ . व्याकुल कटक कीन्ह घननादा। पुनि मा प्रगट कहइ दुर्बादा । • जामवन्त कह खल रह हाड़ा । सुलि करि ताहि क्रोध अति बाढ़ा ॥२॥ मेघनाद ने वागरी सेना को य्याकुल कर दिया, फिर प्रकट होकर दुर्वचन कहने लगा। ने -भरे दुष्ट खड़ा रह, यह सुन कर उसको पड़ा क्रोध हुशा ॥२॥ बूढ़ जानि सठ छाडेउँ ताही । लागेखि अधम पंचार माही ॥ अस कहि तीब्र त्रिसूल जलायो । जामवन्त कर गहि खो धायो ॥३॥ मेघना ने कहा- अरे मूर्ख ! तुझको बुढा समझ कर मैंने छोड़ दिया, रे नीच ! त् मुझे ललकारने लगा है ? ऐसा काह कर तीक्ष्ण मिशल चलाया, जाम्बवान उसे हाथ से पकड़े कर दौड़े ॥३॥ गुरका में 'अस कहि तरल त्रिशुल चलायो' पाठ मारेसि मेघनाद कै छाती। परा भूमि घुर्मित सुरघाती । पुनि रिसान गहि चरन फिरायो । महि पछारि निज बल देखरायो॥2॥ मेघनाद की छाती में मारा, वह देवघाती राक्षस घूम कर धरती पर गिर पड़ा। फिर क्रोध से टाँग पकड़ घुमाकर पृथ्वी पर पटक दिया और अपना बस दिखाया (कि देख, यह चुदाई का बल है) men सभा की प्रति में 'परा धरनि धुर्मित सुरघाती' पाठ है । बर प्रसाद सो मरइन मारा। तब गहि पद लङ्का पर डारा ॥ इहाँ देवरिषि गरुड़ पठायो । राम समीप सपदि सो आयो ॥५॥ बरदान के प्रभाव से जब वह मारने से नहीं मरा तब पाँव पकड़ कर ला पर फेंक दिया । यहाँ देवर्षि नारदजी ने गाड़ को भेजा, वे तुरन्त रामचन्द्रजी के पास भाये ॥५॥ दो०-खगपति सब धरि खाये, माया-नाग-बरूथ । माया-बिगत भये सब, हरये बानर जूथ ॥ माया-निमति साँपों के झुण्ड को पकड़ कर गरुड़ सब खा गये। वानरों का लारा 'दल माया से रहित होकर प्रसन्न हुआ। t .